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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस – नारी के अधिकार और उसके प्रति सम्मान का दिन डॉ सुप्रिया आनंद

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस – नारी के अधिकार और उसके प्रति सम्मान का दिन डॉ सुप्रिया आनंद

100 साल यानि एक सदी से भी ज्यादा वक्त से पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है। लेकिन आज भी पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता की खाई खत्म नहीं हुई है जिसे अब भी पाटने की जरुरत है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक अब भी दुनिया के संसद में 25 फीसदी से भी कम महिला सदस्यों की भागीदारी है। तीन में से एक महिला लिंग आधारित हिंसा की शिकार होती हैं। इतना ही नहीं दुनिया ने एक सदी में अभूतपूर्व प्रगति की है लेकिन अब तक किसी भी देश ने लैंगिक समानता हासिल नहीं की है, जिसकी सबसे ज्यादा जरुरत है। इंसान ने चांद पर छलांग लगाई, मानव पूवर्जों की खोज की और ब्लैक होल तक की तस्वीर निकाली पर जिस नारी के साथ पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है उन्हें आज भी कई तरह की आजादी, समाज में समानता और सम्मान की जरुरत है। दुनिया के कई मुल्क तो ऐसे हैं जहां कानूनी प्रतिबंधों के कारण महिलाओं को पुरुषों के समान नौकरियों तक पहुंचने से रोक दिया जाता है। भारत में हाल के दिनों में जिस तरीके से महिलाओं के प्रति नजरिया बदला और उनके लिए नेवी से लेकर सेना तक में बराबरी के रास्ते खोले जा रहे हैं यह वाकई में आधी आबादी के प्रति एक सच्चा सम्मान है एवं उनके जज्बे और काबिलियत का कद्र भी। दरअसल महिलाओं के अधिकार को लेकर ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत हुई है। इसके पीछे जो जानकारी है वह यह है कि 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में महिलाओं ने एक आंदोलन की शुरुआत की। जब 15 हजार से अधिक महिलाओं ने अपने अधिकार के लिए सड़कों पर प्रदर्शन किया था। महिलाओं की मांग थी कि काम के घंटे कम किए जाए, मेहनताना बढ़ाया जाए और साथ ही साथ उन्हें चुनावों में वोटिंग का अधिकार दिया जाए। यानि महिला मजदूर आंदोलन के कारण अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखी गई और फिर इसका दायरा अमेरिका से निकलकर दूसरे मुल्कों तक पहुंचा एवं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का व्यापक रूप सामने आया। लगभग एक साल बाद, अमरीका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहले राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की थी। जिसके बाद महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार एक महिला क्लारा ज़ेटकिन ने दिया था। क्लारा उस वक़्त कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शिरकत कर रही थीं। कांफ्रेंस में उस समय 17 देशों की करीब 100 महिलाएं मौजूद थीं। इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को मंजूर किया। चाहे अमेरिका हो या रूस जैसे देश यहां अधिकारों के लिए महिलाओं ने आंदोलन शुरू की और फिर यह उनके सम्मान दिलाने का दिन बन गया। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में मनाया गया था। लेकिन इसे औपचारिक मान्यता साल 1975 में उस समय मिली थी जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाना शुरू किया था। पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस थीम के साथ साल 1996 में मनाया गया था और उस वक्त ‘अतीत का जश्न, भविष्य की योजना’ की थीम संयुक्त राष्ट्र ने रखी थी। इस साल यानि वर्ष 2021 के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम “महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना” रखा गया है। जिस तरीके से पूरा विश्व पिछले एक साल से कोविड महामारी से जूझ रहा है और उससे निपटने में महिला कोरोना योद्धाओं ने अपनी भूमिका निभाई है उसे निश्चित तौर पर याद करने और उन्हें सम्मान देने का वक्त है। चाहे अस्पतालों में डॉक्टर हों या नर्स या फिर महिला सफाईकर्मी हर किसी ने इस मुश्किल वक्त में परिवार के साथ साथ पूरी दुनिया को भी इससे निपटने में बड़ी भूमिका निभाई है। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सदी भर में हुए प्रगति पर चिंतन करने और महिलाओं के साहस, दृढ़ संकल्प और उनके द्वारा समाज को दिए गए योगदान का जश्न मनाने का दिन तो है ही उनके लिए भविष्य की चुनौतियों की राह को आसान बनाने का भी दिन है। दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कई रूपों में मनाया जाता है। रूस, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जार्जिया जैसे कई देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन अवकाश रहता है। कुछ देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बच्चे अपनी मां को गिफ्ट देते हैं। मतलब साफ है कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अब भी मनाने की जरुरत है क्योंकि यह दिन यह भी बताने का है कि महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है। साथ ही महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी करना है। महिला, स्त्री, नारी या औरत शब्द कुछ भी क्यों न हो, मां, बहन, बेटी, पत्नी, दादी रिश्ता कोई भी क्यों न हो वो हर जगह सम्मान की हकदार है। इतना ही नहीं महिलाओं का पेशा भी जो हो चाहे डॉक्टर या इंजीनियर या फिर गृहिणी हर जगह समानता का अधिकार भी है जरुरी। आधी आबादी यानि महिलाएं हमारे घर और समाज का एक स्तंभ है इनके बिना दुनिया की कल्पना भी संभव नहीं है। फिर भी महिलाओं के साथ पेशेवर जिंदगी से लेकर घर तक में भेदभाव क्यों। इसे खत्म करना है और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मायने को चरितार्थ कर आगे बढ़ना है। क्योंकि महिलाओं के साथ असमानता को दूर कर ही उन्हें बेहतर सम्मान दिया जा सकता है।