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अगर टाटा स्टील खुद संचरण और वितरण करना चाहती है तब टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड का लाईसेंस रद्द होना चाहिए

टाटा स्टील युटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड की प्रस्तावित बिजली की दरें बढ़ाने के मसले पर झारखंड राज्य विद्धुत नियामक आयोग के चेयरमैन रिटायर्ड न्यायाधीश अमिताभ कुमार गुप्ता और उसके दो सदस्यों अतुल कुमार और महेंद्र प्रसाद के समक्ष ऑटो क्लस्टर के ऑडिटोरियम में कल दिनांक 7.7.2023 को सुनवाई हुई। उक्त सुनवाई में सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और अधिवक्ता ऋषभ रंजन ने किया। उन्होंने आयोग को बताया कि टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड के प्रस्ताव में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह कंपनी जो टाटा स्टील की ही 100% सहायक कंपनी है, वह टाटा स्टील से बिजली खरीदती है। उन्होंने सबसे पहले वैधानिक सवाल उठाते हुए कहा कि टाटा स्टील न तो बिजली की उत्पादक है न संचरण और वितरण करती है तब यह कंपनी इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 14 के तहत सालों से लाईसेंसधारी किस बिना पर है? उन्होंने कहा कि टाटा स्टील का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 14 के तहत मिली लाईसेंस तत्काल प्रभाव से निरस्त होना चाहिए! उन्होंने आगे कहा कि अगर टाटा स्टील खुद संचरण और वितरण करना चाहती है तब टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड का लाईसेंस रद्द होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने टाटा की तीनों कंपनियों का एन्युअल रिवेन्यू रिटर्न देखा है उसके अनुसार टाटा स्टील टाटा पावर से ₹3.72 प्रति युनिट बिजली खरीदती है और बिना कोई सेवा दिये ₹4.82 प्रति युनिट टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड को बेचती है यह ₹1.10 पैसे का सीधा फर्जीवाड़ा है। उन्होंने आगे कहा कि तीनों कंपनियां टाटा ग्रुप कंपनियां हैं अतः टाटा स्टील जो एक इंटरमीडियरी की भूमिका में है उसे हटाकर बाकी दोनों कंपनियों के एन्युअल रिवेन्यू रिटर्न की कॉस्ट अकाउंटिंग रिकार्ड रूल्स के अनुसार जांच करनी चाहिए और गैरवाजिब कॉस्ट को हटाकर समेकित कॉस्ट सीट बनानी चाहिए तभी बिजली का सही मूल्य निर्धारण हो सकेगा। उन्होंने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 61 का उल्लेख करते हुए कहा कि टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड द्वारा जो रिप्रेजेंटेशन दिया गया है वह धारा 61 के प्रावधानों के अनुसार नहीं है और इसमें गैरवाजिब कॉस्ट भी जोड़े गये ताकि ये अपने बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को जायज ठहरा सके। उन्होंने कहा कि टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड को जो सरकारी सबसिडी मिली है उसका जिक्र नहीं है प्रस्ताव में। उन्होंने आगे बताया कि फीस्क्ड चार्जेस घटना चाहिए जबकि ये बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा फिक्सड चार्जेज और फ्युअल सरचार्ज बढ़ाने की टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड की जो मांग है वह बिल्कुल नाजायज़ है क्योंकि उसे जायज ठहराने का इनके पास डेटा नहीं है। उन्होंने एल आई सी बनाम एस्कॉर्ट्स (1986) मामले का हवाला देते हुए आगे कहा कि फ्रॉड के मामले में आयोग तीनों कंपनियों के कॉरपोरेट के फर्जी आवरण को हटा कर तीनों कंपनियों को एक मान कर इसके कॉस्ट स्ट्रक्चर को समेकित कर सकती है और अगर ऐसा किया गया तो बिजली की जो दर अभी है वह भी कम हो जायेगी। उन्होंने आयोग के समक्ष अपना लिखित हस्तक्षेप प्रस्तुत किया और अपना पूरक लिखित हस्तक्षेप दायर करने की अनुमति भी मांगी।

अधिवक्ता अखिलेश ने पत्रकारों को बताया कि आयोग के सदस्यों द्वारा खुलेआम टाटा स्टील और इसकी सहयोगी कंपनियों की तारीफ करना आयोग की निष्पक्षता को कटघरे में खड़ा करता है। उन्होंने कहा कि आयोग को बताया गया कि टाटा स्टील तथाकथित लीज की शर्तों के अनुसार बिजली और पानी का जमशेदपुर में मुनाफे का व्यवसाय नहीं कर सकती पर टाटा स्टील ने टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड बनाकर इसे मुनाफे का धंधा बना दिया। उन्होंने ये भी कहा कि टाटा स्टील युटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड बिजली और पानी की आपूर्ति के लिए शहर में गैरकानूनी तरीके से बिल्डरों को अपना एजेंट बनाकर रखी है जो उपभोक्ताओं से मनमाने पैसे वसूलते है और मीटर आधारित बिल भी नहीं देते। उन्होंने कहा टाटा स्टील द्वारा सालों किये जा रहे अविश्वसनीय फ्रॉड के बावजूद आयोग के सदस्यों द्वारा टाटा की सार्वजनिक रूप से तारीफ करना खेदजनक है और यह आयोग की विश्वसनीयता को कम करता है। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो इस फर्जी जनसुनवाई के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जायेगा।