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आमझरिया” कीर्तन नगर” के नाम से जाना जाएगा लगभग 180 देश से आनंदमार्गी यहां कीर्तन करने आएंगे

आमझरिया” कीर्तन नगर” के नाम से जाना जाएगा लगभग 180 देश से आनंदमार्गी यहां कीर्तन करने आएंगे

परम पुरुष के प्रति जो प्रेम है उसे ही भक्ति कहते हैं भक्ति पथ नहीं है बल्कि भक्ति लक्ष्य है जिसे हमें प्राप्त करना है
जीवन में जितने भी अनुभूतियां होती भक्ति की अनुभूति सर्वश्रेष्ठ है

जमशेदपुर : जमशेदपुर से हजारों की संख्या में कीर्तन प्रेमी भक्तगण झारखंड के लातेहार जिला के
आमझरीय विश्व स्तरीय कीर्तन नगर में आज 72 घंटे का “बाबा नाम केवलम” अखंड कीर्तन संपन्न हुआ
आनंद मार्ग प्रचारक संघ ने यह घोषणा की है कि लातेहार जिला के आमझरिया” कीर्तन नगर” के नाम से जाना जाएगा आनंद मार्ग पूरे विश्व के 180 देश में फैला हुआ है 180 देश में भक्तगण निरंतर आध्यात्मिक जागरण के लिए काम कर रहे हैं ,लगभग 180 देश से आनंदमार्गी यहां कीर्तन करने आएंगे
आनंद मार्ग के संस्थापक भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने 8 अक्टूबर के दिन ही
सन् 1970 को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने लातेहार जिला के आमझरिया में मानवता के कल्याण हेतु सिद्ध महामंत्र ” बाबा नाम केवलम ” कीर्तन प्रदान कर भक्तों के लिए अहेतुकी कृपा किए
आज कीर्तन संपन्न होने के पश्चात आचार्य स्वरूपानंद अवधूत ने अपने आध्यात्मिक उदबोधन में कहा की *”भक्तों के जीवन का लक्ष्य “* विषय पर बताते हुए कहा कि शास्त्रों में तो मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बताए गए हैं – ज्ञान ,कर्म और भक्ति। परंतु उन्होंने कहा कि बाबा श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने इसे खंडन करते हुए कहा कि भक्ति पथ नहीं है बल्कि भक्ति लक्ष्य है जिसे हमें प्राप्त करना है साधारणत: लोग ज्ञान और कर्म के साथ भक्ति को भी पथ या मार्ग ही मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है।
उन्होंने कहा कि जीवन में जितने भी अनुभूतियां होती भक्ति की अनुभूति सर्वश्रेष्ठ है। ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग के माध्यम से मनुष्य भक्ति में प्रतिष्ठित होते हैं। और बाबा कहते हैं कि भक्ति मिल गया तो सब कुछ मिल गया तब और कुछ प्राप्त करने को कुछ नहीं बच जाता। भक्ति को श्रेष्ठ कहा है उन्होंने बताया की मोक्ष प्राप्ति के उपाय एवं में भक्ति श्रेष्ठ है भक्ति आ जाने पर मोक्ष यूं ही प्राप्त हो जाता है .भक्त और मोक्ष में द्वंद होने पर भक्त की विजय होती है मोक्ष यूं ही रह जाता है उन्होंने कहा कि परमात्मा कहते हैं की मैं भक्तों के हृदय में वास करता हूं जहां वे मेरा गुणगान करते हैं कीर्तन करते हैं परम पुरुष के प्रति जो प्रेम है उसे ही भक्ति कहते हैं। निर्मल मन से जब इष्ट का ध्यान किया जाता है तो भक्ति सहज उपलब्ध हो जाता है।