आँसू, आँसू में फरक
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राजा मूरख जब कभी, करें लोग मंजूर।
होता है विद्वान तब, रोज सभा से दूर।।
केवल आँसू से कभी, क्या बदले परिवेश?
खुद का घर भी ना बचा, बचा रहे वो देश।।
आँसू, आँसू में फरक, आँसू है इक जाल।
नकली आँसू देख अब, सुबक रहा घड़ियाल।।
पानी कम, गरमी बहुत, जगह जगह पर लाश।
नदियाँ व्याकुल कह रहीं, बरसो हे आकाश।।
सरकारें भी सोच से, दिखतीं हैं कंगाल।
लोग सहित अब मीडिया, पूछे नहीं सवाल।।
बेबस लोग जमीन पर, दिखा रहे आकाश!
जीवन भर सुख ना मिला, दिखतीं लाश, हताश।।
सीखा पूर्वज से तभी, बचा हमारा आज।
दोषी उनको कह रहे, तनिक शेष क्या लाज??
शासक, शासित बीच में, रहा सदा इक दौर।
शासित, शासित से लड़े, शासन करता और।।
हार, जीत इक राह में, जरा होश रख मीत।
मान लिया तो हार है, ठान लिया तो जीत।।
श्यामल सुमन
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