यारों! खड़ा कहाँ अब देश?
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चोरी करता जहाँ सिपाही, मुजरिम देता अगर गवाही।
समाचार शासक-गुण गाए, तब आती झट तानाशाही।
यारों! खड़ा कहाँ अब देश?
बनाओ बेहतर सा परिवेश।।
सोच अगर विपरीत किसी की, क्या दुश्मन बन जाते?
लेकिन अभी सियासत में क्यों, अक्सर ही ठन जाते?
पक्ष, विपक्षी ने आपस में, पहले खूब निबाही।
यारों! खड़ा कहाँ अब देश —–
आज सियासी पेशा में जो, पैसा ख़ूब बनाया।
लेकिन हम सबको आपस में, कैसे रोज लड़ाया?
जिस कारण नैतिक मूल्यों की, होती रही तबाही।
यारों! खड़ा कहाँ अब देश —–
जीने खातिर रोजी रोटी, पहला धर्म हमारा।
आपस में मिल्लत से रहना, मौलिक कर्म हमारा।
लोक जागरण सुमन करेगा, होगी नहीं कोताही।
यारों! खड़ा कहाँ अब देश —–
श्यामल सुमन
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