सुमन यहाँ जलते दिन-रात
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मिहनत जो करते दिन-रात
वो दुख में रहते दिन-रात
सुख देते सबको निज-श्रम से
तिल-तिल कर मरते दिन-रात
मिले पथिक को छाया हरदम
पेड़, धूप सहते दिन-रात
बाहर से भी अधिक शोर क्यों
भीतर में सुनते दिन-रात
दूजे की चर्चा में अक्सर
अपनी ही कहते दिन-रात
हृदय वही परिभाषित होता
प्रेम जहाँ बसते दिन-रात
मगर चमन का हाल तो देखो
सुमन यहाँ जलते दिन-रात
श्यामल सुमन
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