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सरकारी बैंक अपनी गैर-निष्पादित संपत्तियों एनपीएज को सिर्फ सरकारी बैंकों और एनबीएफसी कंपनियों को ही सौंप सकते हैं

आज दिनांक 21.01.2021को टाटा स्टील लिमिटेड द्वारा इन्कैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सुरक्षित देनदारियों (त्रृणों) को सरकारी बैंकों द्वारा गैरकानूनी तरीके से प्राईवेट कंपनियों (कमला मिल्स, फस्का इन्वेस्टमेंट, पेगाशस एसेट रिकन्सट्रक्शन) को हस्तांतरित करने के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में 2018 में दायर रिट पिटीशन नंबर 14251, 14253 और 15541 में सुनवाई हुई। कमला मिल्स की तरफ से जिरह करते हुए अधिवक्ता रूद्रेश्वर सिंह ने माननीय अदालत को गुमराह करने की कोशिश करते हुए कहा कि बैंकों ने कमला मिल्स, फस्का इनवेस्टमेंट और पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को इंकैब इन्डस्ट्रीज लिमिटेड की अपनी लेनदारियों (गैरनिष्पादित परिसंपत्तियां; एनपीएस को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 130 (एक्शनेबल क्लेम्स) के तहत हस्तांतरित किया। पर माननीय न्यायाधीश ने तुरंत ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 130 (एक्शनेबल क्लेम्स) को पढ़ कर अधिवक्ता के दावे को सुधारते हुए बताया कि बैंकों की सुरक्षित देनदारियाँ एक्सनेबल क्लेम्स में नहीं आती है अतः आपका तर्क सही नहीं है। इसके बाद अधिवक्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन द्वारा कमला मिल्स के उपर दायर अदालत की अवमानना के एक मामले में दिये एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने उक्त लेनदारियों के हस्तनांतरण को सही ठहराया था इस पर मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने आपत्ति करते हुए कहा कि यह अदालत को गुमराह कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह मसला था ही नहीं कि बैंक अपनी देनदारियों को प्राईवेट कंपनियाँ जो बैंक या एनबीएफसी नहीं हैं को हस्तांतरित कर सकती है या नहीं चूकी कमला मिल्स के अधिवक्ता ने अपनी जिरह पूरी नहीं की थी अतः माननीय उच्च न्यायालय ने मजदूरों के अधिवक्ता से अगली तारीख को कमला मिल्स की जिरह समाप्त होने के बाद प्रतिउत्तर देने को कहा।
ज्ञातव्य है कि इंकैब के मजदूरों द्वारा उक्त कार्यवाही में हस्तक्षेप पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने 05.03.2020 को संज्ञान लिया था और इंकैब के मजदूरों के अधिवक्ताओं की जिरह के आधार पर 5 मार्च, 2020 की सुनवाई में आदेश पारित किया था।
माननीय उच्च न्यायालय ने एनसीएलटी द्वारा 07.02.2020 दिये गये इंकैब कंपनी के परिसमापन के आदेश को अपने संज्ञान में लेकर 05.03.2020 के अपने उक्त आदेश में इंकैब के मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव के इस बहस को दर्ज किया था कि इंकैब कंपनी की सरकारी बैंकों की देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को सौंपना माननीय उच्चतम न्यायालय के आईसीआईसीआई बैंक बनाम ऑफिशियल लिक्विडेटर ऑफ एपीएस स्टेट इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2010) 10 एससीसी 1 मामले में दिये गये फैसले के प्रतिकूल है। माननीय उच्च न्यायालय ने यह भी दर्ज किया था कि सरकारी बैंक अपनी गैरनिष्पादित संपत्तियों एनपीएज को सिर्फ सरकारी बैंकों और एनबीएफसी कंपनियों को ही सौंप सकते हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने अपने उक्त आदेश में यह भी दर्ज किया भारत के कानून में उपरोक्त व्यवस्था के अलावे कुछ और सक्षम करने का प्रावधान नहीं है। माननीय अदालत ने आज की कार्यवाही में कमला मिल्स को अधिवक्ता को यह याद दिलाया कि उन्हें माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त आदेश का भी जवाब देना है।
अगली कार्यवाही 04.02.2021 को होगी। इंकैब कर्मचारियों की तरफ से उक्त सुनवाई में कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया

*जमशेदपुर: आज 22. जनवरी को एनसीएलटी द्वारा 07.02.2020 को इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड के खिलाफ दिये गये परिसमापन आदेश के खिलाफ दिल्ली स्थित अपीलीय न्यायाधीकरण में इंकैब इंडस्ट्रीज के मजदूरों द्वारा दायर अपील पिटीशन पर सुनवाई हुई।
बहस की शुरुआत करते हुए कोलकाता के मजदूरों के अधिवक्ता रिशभ बनर्जी ने कहा कि एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को दिवाला और दिवालिया कानून (Insolvency & Bankruptcy Code) के तहत दिवालिया कंपनियों को पुनर्जीवित करने का अधिकार है परिसमापन का नहीं। परिसमापन किसी दिवालिया कंपनी की अंतिम गति होती है जब उसके पुनर्जीवित करने के सारे उपाय असफल सिद्ध होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि कमला मिल्रस के मालिक और निदेशक रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब इंडस्ट्रीज के भी निदेशक रहे हैं अतः कमला मिल्स और फस्का इन्वेस्टमेंट कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के सदस्य नहीं हो सकते। इस दृष्टिकोण से नहीं केवल कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स का गठन गलत हुआ है बल्कि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स ने रिजोल्यूशन प्रोफेशनल के साथ साजिश कर इंकैब कंपनी के परिसमापन का रिजोल्यूशन पारित कर लिया और माननीय एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी ने स्थापित कानूनों की अवहेलना कर कंपनी का गैरवाजिब परिसमापन आदेश पारित कर दिया। उन्होंने अपीलीय न्यायाधीकरण से उक्त आदेश को रद्द करने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि बैंकों का अपनी देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को बेचना गलत है।
कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स की तरफ से जिरह करते हुए अधिवक्ता रूद्रेश्वर सिंह ने कोलकाता उच्च न्यायालय में किये गये अपने जिरह को ही आगे बढ़ाया और कहा कि बैंकों ने कमला मिल्स, फस्का इनवेस्टमेंट और पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को इंकैब इन्डस्ट्रीज लिमिटेड की अपनी लेनदारियों (गैरनिष्पादित परिसंपत्तियां एनपीएज को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट 1882 की धारा 130 (एक्शनेबल क्लेम्स) के तहत हस्तांतरित किया। इसके बाद अधिवक्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन द्वारा कमला मिल्स के ऊपर दायर अदालत की अवमानना के एक मामले में दिये एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने उक्त लेनदारियों के हस्तनांतरण को सही ठहराया था। उन्होंने यह भी कहा कि रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब के निदेशक 2009 के बाद नहीं रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि रमेश घमंडीराम गोवानी ने इंकैब कंपनी का कोई भी पैसा नहीं हड़पा है।
मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि मोराटोरियम आदेश पारित करने बाद निदेशक मंडल निलंबित हो जाती है यह अनिवार्य है। पर माननीय एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को यह पता ही नहीं है कि इंकैब के निदेशक मंडल में कौन निदेशक हैं? अतः 09.08.2019 का एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी का इंकैब के खिलाफ मोराटोरियम आदेश भी गलत है। उन्होंने यह भी करते हुए कहा कि रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने परिचालन देनदारियों को बिना कोलेट किये केवल कमला मिल्स, फस्का और पेगासस की फर्जी लेनदारियों के आधार पर कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स बना कर उनसे परिसमापन का रिजोल्यूशन पारित करा लिया और माननीय एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को गुमराह कर परिसमापन आदेश पारित करवा लिया।
उन्होंने कहा कि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के अधिवक्ता अदालत को गुमराह कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह मसला था ही नहीं कि बैंक अपनी देनदारियों को प्राईवेट कंपनियाँ जो बैंक या एनबीएफसी नहीं हैं, को हस्तांतरित कर सकती है या नहीं। उन्होंने अदालत को बताया कि बैंक प्राईवेट कंपनियों की अपनी देनदारियां हस्तांतरित नहीं कर सकती यह इस देश का कानून है। उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक लिमीटेड के मामले मे दिये गये सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले (2010 10 scc 1) का हवाला दिया। उन्होंने आगे कहा कि माननीय एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी ने अपने आदेश में कहा है कि इंकैब कंपनी गोईंग कनसर्न नहीं है यह भी सर्वोच्च न्यायालय के 2001 मे रिसड़ा स्टील लिमिटेड के मामले में दिये गये फैसले (2001 1 scc 736) के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि परिसमापन आदेश के पारा 72 में एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी ने यह कहा कि लिक्विडेटर रमेश घमंडीराम गोवानी द्वारा किये गये फर्जीवाड़े की जांच करे जिसकी कोई जांच लिक्विडेटर ने नहीं की है क्योंकि लिक्विडेटर रमेश घमंडीराम गोवानी के आर्थिक हितों के पक्ष में और इंकैब इंडस्ट्रीज कंपनी के आर्थिक हितों के खिलाफ काम कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि मजदूरों को किसी इन्वेस्टर की जरूरत नहीं है। कंपनी के पास 1600 करोड़ की संपत्ति है और रमेश घमंडीराम गोवानी ने 100 करोड़ का फर्जीवाड़ा किया है जबकि कंपनी फिर से चलाने के लिए सिर्फ 150 करोड़ रूपये चाहिए। उन्होंने अदालत से प्रार्थना की कि आप हमें कंपनी को फिर से चालू करने का आदेश दें हम कंपनी को खुद पुनर्जीवित कर लेंगे।
माननीय अपीलीय न्यायाधीकरण ने कहा कि वे जल्दी आदेश पारित करना चाहती है अतः अगली कार्यवाही की तारीख सोमवार 25.01.2021 को मुकर्रर की। इंकैब कर्मचारियों की तरफ से उक्त सुनवाई में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, संजीव मोहंती, चन्द्रलेखा और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया।