झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

शीशे पे पत्थर की इनायत

शीशे पे पत्थर की इनायत
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पढ़े, लिखे लोगों की हालत, देख मेरा मन रोता है
रचना तक में खोटी नीयत, देख मेरा मन रोता है

जिसकी नीयत जैसी होगी, वही नियति होगी उसकी
नहीं छोड़ते फिर भी आदत, देख मेरा मन रोता है

उपजे भाव सुकोमल दिल में, संभव काव्य सृजन होगा
कवियों से कवियों को शिकायत, देख मेरा मन रोता है

नित बेहतर हो अपनी दुनिया, यह साहित्य सिखाता है
बात बात में मगर अदावत, देख मेरा मन रोता है

लाजिम करना वार जहाँ पर, वार सुमन से कर देना
शीशे पे पत्थर की इनायत, देख मेरा मन रोता है

श्यामल सुमन