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साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा मिथिलाक्षर लिपि के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आज ज़ूम एप के माध्यम से राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया

साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा मिथिलाक्षर लिपि के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आज ज़ूम एप के माध्यम से राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया।
डॉक्टर शशिनाथ झा,बीज भाषण डा रमण जा तथा विषय प्रवर्तन एलबीएसएम कॉलेज जमशेदपुर में मैथिली के विभागाध्यक्ष एवं साहित्य अकादमी के मैथिली एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक डा ए.के झा ने किया। आलेख सत्र की अध्यक्षता डा भवनाथ झा ने किया। इस सत्र में कौशल किशोर झा,पं अजय झा शास्त्री एवं पं कौशल झा ने अपना शोध आलेख प्रस्तुत किया। स्वागत अकादमी के उपसचिव एन सुरेश बाबू ने किया।
मैथिली लेल मिथिलाक्षर अभियान को गति देने की आवश्यकता है। इस दिशा में मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान दूर्वाक्षत मिशन,सिद्धि रस्तु ट्रस्ट, मिशन मिथिलाक्षर लिपि आदि कई संस्थानों का कार्य सराहनीय है। भारत की प्राचीन लिपियों में से एक मिथिला क्षेत्र का एक प्राचीन समृद्ध संस्कृति के लिए दुर्भाग्य की बात है। हजारों प्राचीन पांडुलिपियों संस्कृत प्राकृत आदि की मिथिलाक्षर में ही उपलब्ध है। निरंतरता में 1807 ई0 तक इसका बहु विधि प्रयोग होता रहा है। 1931 ई0 तक मध्यमा तक की परीक्षाएं इसी लिपि में होती थी।
बीज भाषण देते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विद्वान प्राध्यापक डॉ रमन थाने बाल्मीकि रामायण के कई प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि हनुमान जी का संवाद मानसी भाषा यानी तत्कालीन मैथिली भाषा में ही सीता के साथ अशोक वाटिका में हुआ था।इस भाषा का पुनरुत्थान और इसी भाषा में साहित्य की शरद ना हो इसके लिए स्वरों का योगदान महत्वपूर्ण है और संकल्प से सिद्धि तक पहुंचा जा सकता है