रोटी में जो चाँद निहारे
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वे खोजे महबूब चाँद में हाल जहाँ माकूल है
रोटी में जो चाँद निहारे क्या भूखों की भूल है
लोग सराहे जाते वैसे जनहित में जो खड़े अभी
अगर साथ चलना तो कहते, रस्ते बहुत बबूल है
अपने अपने तर्क सभी के खुद की गलती छुप जाए
गलती को आदर्श बताकर कहते यही उसूल है
सूरत कैसी अपनी यारो देख नहीं पाया अबतक
समझ न पाया दर्पण पे या चेहरे पर ही धूल है
माँ की ममता का बँटवारा सन्तानों में सम्भव क्या
कहीं पे रौनक कहीं उदासी, कैसा नियम रसूल है
किसी के कंधे अर्थी देखो दूजे पर दिखती डोली
रो कर लोग विदा करते पर दोनों पर ही फूल है
संघर्षों में चलता जीवन सोच समझकर चला करो
शायद सुमन कहीं मिल जाए बाकी सब तिरशूल है
श्यामल सुमन
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