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रांची पुलिस ने उपकरण बैंक के लिए थानों में बनाए नोडल ऑफिसर लोगों से की डिजिटल उपकरण दान करने की अपील

रांची पुलिस ने उपकरण बैंक के लिए थानों में बनाए नोडल ऑफिसर लोगों से की डिजिटल उपकरण दान करने की अपील

डीजीपी नीरज सिन्हा की पहल से झारखंड में थाना स्तर पर उपकरण बैंक खोले जा रहे हैं. आज रांची के एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने सभी थानों में उपकरण बैंक शुरुआत की. सभी 46 थानों में नोडल ऑफिसर भी नियुक्त कर दिए गए हैं. रांची पुलिस ने लोगों से मोबाईल, लैपटॉप और अन्य उपकरणों को थाने में दान करने की भी अपील की है.
रांची: झारखंड पुलिस की ओर से गरीब बच्चों के लिए मोबाईल, लैपटॉप, डिजिटल डिवाइस दान के लिए पहल के बाद रांची पुलिस ने कवायद शुरू कर दी है. रांची के एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने सभी थानों में उपकरण बैंक की शुरुआत कर दी है, जबकि सभी 46 थानों में नोडल ऑफिसर भी नियुक्त कर दिए गए हैं. इससे संबंधित आदेश एसएसपी ने जारी कर दिया है.
आदेश में बताया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से स्कूल-काॅलेज बंद है सिर्फ ऑनलाइन क्लास ही चल रही है, लेकिन कई ऐसे मेधावी बच्चे हैं, जिनके पास मोबाईल, लैपटॉप जैसे डिजिटल डिवाइस की सुविधा नहीं होने से जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है. ऐसे गरीब बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हो सके, इसके लिए सामुदायिक पुलिसिंग के तहत उपकरण बैंक की शुरुआत की गई है. झारखंड पुलिस ने लोगों से मोबाईल, लैपटॉप और अन्य उपकरणों को थाने में दान करने की अपील की है.
ये दिया गया है निर्देश
सभी थानों में उपकरण बैंक खोले जाएं, जहां आम लोग अपने पुराने स्मार्टफोन और लैपटॉप जमा कर सकें.
जमा किए गए प्रत्येक उपकरण के संबंध में थाने में सनहा अंकित किया जाए और उसकी सत्यापित प्रति उपकरण जमा करने वाले व्यक्ति को प्रमाण स्वरूप दी जाए, इससे उन्हें संतुष्टि होगी, कि उपकरण के दुरुपयोग किए जाने की स्थिति में जमाकर्ता जिम्मेवार नहीं होंगे.
सन्‍हा में जमाकर्ता का नाम और पता, स्मार्टफोन का आइएमइआइ नंबर, लैपटॉप का यूनिक पहचान नंबर, जमा किए जाने की तिथि व समय अवश्य अंकित किया जाए.
थाना और जिला स्तर पर भी इसके रिकॉर्ड बने, ताकि भविष्य में कोई परेशानी आने पर उसका हल निकल सके और बेवजह कोई परेशान नहीं हो.
थाना स्तरीय उपकरण बैंक में जमा उपकरण शीघ्र जिला स्तरीय उपकरण बैंक में जमा कराया जाए.
जमा किए गए स्मार्टफोन-लैपटॉप का वितरण गरीब और मेधावी छात्रों के बीच उनके प्रधानाध्यापकों की अनुशंसा पर की जाए

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*पैरों में बूट और गले में मेडल की है चाहत तंगी ने हाथों में थमा दिये कुदाल*

धनबाद की फुटबॉलर सुमति मरांडी कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने के बाद सरकारी उदासीनता का शिकार हो गई है. गरीबी और आर्थिक तंगी से मजबूर सुमति अब खेतों में 125 रुपये रोजाना की मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पाल रही है. सुमति के पिता ने सरकार से उस पर ध्यान देने की मांग की ताकि एक अच्छे फुटबॉलर के सपने को टूटने से बचाया जा सके.
धनबाद: झारखंड में होनहार खिलाड़ियों की कमी नहीं है. कई खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय पहचान भी बनाई है. तो कई खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो पैसे की कमी और राज्य सरकार की उदासीनता की वजह से मजदूरी करने को विवश हैं. ऐसी ही एक खिलाड़ी है सुमति मरांडी. राज्यस्तर की यह फुटबॉल खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के बल पर कई मेडल जीत चुकी हैं लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी ने ऐसा मजबूर किया कि वह खेल छोड़कर मजदूरी करने को विवश है. सुमति फुटबॉलर के साथ अच्छी धावक भी है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पाने के कारण यह दूसरे के खेतों में रोजाना 125 रुपए की मजदूरी पर काम कर रही है.
सुमति मरांडी मैथन एरिया के पांच नंबर स्थित पुरुलिया बस्ती में रहने वाले आदिवासी दंपती लखीराम मरांडी और सनी मरांडी की इकलौती संतान है. इनकी मां सनी मरांडी को बेटी होने के बाद बेटे की कभी चाह नहीं हुई और उन्होंने बेटी को ही अपना बेटा माना. सुमति ने भी अपनी मां और पिताजी के सपनों को बेटे की तरह ही पूरा करने की कोशिश की. फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में अपना परचम लहराया. 2019 में रांची में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में शामिल हुई. धनबाद में जिलास्तर पर कई फुटबॉल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर पदक जीता. सुमति फुटबॉलर के साथ-साथ एक अच्छी धावक भी है. 2016 में राज्यस्तरीय एथलेटिक्स में 400 मीटर की दौड़ मे भी सुमति को मेडल मिला. लेकिन परिवार की दयनीय स्थिति ने उसे मजदूरी करने पर विवश कर दिया.
सुमति की मां सनी मरांडी मजदूरी करती हैं, जबकि पिता लखीराम मरांडी बेरोजगार हैं. मां की बिगड़ती तबीयत और खस्ताहाल आर्थिक हालत ने सुमति को खेल के मैदान को छोड़कर खेतों में मजदूरी करने के लिए विवश कर दिया. सुमति बताती हैं कि वे रोजाना खेतों में मजदूरी करती है तब उन्हें 125 रुपये मिलता है, जिससे उनका घर चल रहा है. ऐसी हालत में उनके लिए खेल का अपना सपना पूरा करने में कठिनाई हो रही है. वह बताती है कि इस मुश्किल समय में भी प्रैक्टिस करना कभी नहीं छोड़ती.
सुमति की मां सनी मरांडी कहती हैं कि हमारी यही एक संतान है. बुढापे का सहारा है. इतना अच्छा खेलने के बावजूद सरकार का ध्यान हमारी बेटी पर नहीं है. सरकार यदि मदद नहीं करेगी तो हम सभी के सिए सड़क पर बैठकर भीख मांगने की नौबत आ जाएगी. सरकार की तरफ से महीने में पांच किलो अनाज मिलता है जो काफी नहीं है. पिता लखीराम मरांडी का कहना है कि सरकार बेटी को एक नौकरी दे देती तो अच्छा रहता. हम सब का गुजर बसर भी चल जाता और हमारी और बेटी के सपनों के पंख भी लग जाते.