झारखण्ड वाणी

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राजेंद्र प्रसाद को सभी लोग प्यार से बाबू बोलते थे

सरायकेला खरसावां आदित्यपुर – तीन दिसंबर 1884 में सिवान जिले के जीरादेई ग्राम में जन्मे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तित्व के धनी सन 1946 से लेकर 1947 तक भारत के कृषि और खाद्य मंत्री का दायित्व संभालते हुए 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में दायित्व ग्रहण किया राजेंद्र प्रसाद को सभी लोग प्यार से बाबू बोलते थे राजेंद्र बाबू के पिता महादेव लाल संस्कृत और फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्म पारायण महिला थी कायस्थ में जन्मे पढ़ा लिखा परिवार विशेष रूप से संस्कृत, उर्दू और फारसी उनके दादाजी बाबू चौधुर लाल हथवा रियासत में दीवान थे
जीरादेई में उनके जमींदारी एवं खेती-बाड़ी का काम बाबू के पिताजी महादेव लाल उनके चाचा जगदेव लाल संभालते थे पांच वर्ष की उम्र से ही राजेंद्र बाबू को मौलवी साहब ने फारसी और उर्दू की शिक्षा दी बाद में प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा जिला स्कूल गए पुरानी परंपरा के अनुसार तेरह वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी राजवंशी देवी से हुई विवाह के बाद भी उनकी पढ़ाई चालू रही और 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा दी और प्रथम स्थान प्राप्त किया 1902 में कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनका दाखिला हुआ और आरंभ से ही बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा और गोपाल कृष्ण गोखले का सानिध्य प्राप्त हुआ सभी जानते हैं उनके परीक्षक ने उनके परीक्षा की कॉपी जांच करते समय लिखा था Examine is better than examiner.
राजेंद्र बाबू फारसी उर्दू के अतिरिक्त हिंदी से बहुत प्रेम रखते थे और उन्होंने बी ए की परीक्षा में हिंदी से दिया था हालांकि अंग्रेजी हिंदी उर्दू फारसी और बंगाली भाषा में भी उनको महारत प्राप्त थी गुजराती का भी व्यावहारिक ज्ञान उन्हें था
प्रति अगद प्रेम के फल स्वरुप वह भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी से बहुत नजदीक थे और चंपारण में नील कोठी आंदोलन में अहम भूमिका निभाई उनके पुत्र मृत्युंजय प्रसाद पढ़ने में काफी तेज थे और गांधी जी के विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार के फलस्वरुप मृत्युंजय बाबू का नाम कोलकाता से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिला कराए राजेंद्र बाबू 1934 में राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के बाद 1939 में भी वह भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे| सरलता, सहजता, सकारात्मक सोच के धनी राजेंद्र बाबू अपने जीवन में निस्वार्थ सेवा का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया सरोजिनी नायडू ने उनके बारे में लिखा था “उनकी असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है। गाँधी जी के निकटतम शिष्यों में उनका वही स्थान है जो ईसा मसीह के निकट सेंट जॉन का था।
1962 में राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात बहुत ही सादगी और सरल जीवन पटना के सदाकत आश्रम में व्यतीत किया| उनकी पत्नी राजवंशी देवी की निधन हो गई| सादगी, सरलता, सहजता, सर्व धर्म समन्वय, सदभावना के प्रतीक डॉ राजेंद्र प्रसाद के सिद्धांत उनकी जीवन शैली भारतीय संस्कृति और संस्कार से उनका लगाव सनातन धर्म में उनका अटूट विश्वास और जब खाद्य मंत्री थे तो गांव की खेती में जो भी मोटा अनाज होता था उसका उपभोग करने के प्रति बहुत समर्पित व्यक्तित्व के धनी थे| आज भी उनके सिद्धांत समर्पित व्यक्तित्व समाज के लिए उदाहरण है उधार की जिंदगी से बहुत दूर कम खर्च वाली जीवनशैली में विश्वास करने वाले बचत की ओर उनका काफी प्राथमिकता था शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई और संस्कृत के प्रति उनका बहुत लगाव था जिस तरह विदेशी सभ्यता के रहन-सहन की ओर लोग आंख मूंदे भाग रहे हैं यह हमें इंगित करता है कि हमको राजेंद्र बाबू जैसा विद्वान भारत के प्रथम राष्ट्रपति के तरह सहज सरल सहयोगी पूरे संकल्प और समर्पण के साथ संस्कृति का रक्षा करते हुए बचत में विश्वास करना चाहिए और संयुक्त परिवार को एक साथ रखने की कला को अगर हम अपनाए तो भारत का भविष्य भारत में रहने वाले सभी पुरुष महिलाएं और बच्चों-बच्चियों का जीवन काफी स्वस्थ, शिक्षित ,सादगी और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण होगा| हम गणतंत्र में विश्वास करते हैं पूरे विश्व में गणतंत्र का झंडा फहराने में अगले पंक्ति में खड़े हैं भगवान करे भारत के सर्वांगीण विकास में हम बाबू के सिद्धांतों को अपना के विकास की ओर अग्रसर हों

रपट- ए के श्रीवास्तव अध्यक्ष जमशेदपुर सिटीजन फोरम