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राँची के मोरहाबादी मैदान में चल रहे पर्यावरण मेले का आज समापन हो गया

राँची के मोरहाबादी मैदान में चल रहे पर्यावरण मेले का आज समापन हो गया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि की अध्यक्षता झारखण्ड सरकार के  मुख्यमंत्री  हेमन्त सोरेन ने किया हेमन्त सोरेन ने इस अवसर पर कहा कि पर्यावरण एक ऐसा क्षेत्र है, जहां यदि इसका नुकसान हुआ तो समझो कि हम अपने आपको नुकसान पहुंचा रहे है। हमें व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण का ख्याल रखना होगा। 90 के दशक में राँची में पंखा का प्रचलन नहीं था, पर अब इसके बिना आप घरोें में, कार्यालयों में रह नहीं सकेंगे। सोचिए किस कदर, किस तेजी से राँची का पर्यावरण बदला है। आज डैमों का पानी तालाबों और डोभा के पानी से ज्यादा दूषित है। इसे और प्रदूषित नहीं करे, इसलिए इस पर हम सभी को संयुक्त रूप से प्रयास करना चाहिए। झारखण्ड राज्य आदिवासी बहुल राज्य है। जल, जंगल, जमीन ही इसकी आत्मा है।

इससे पूर्व आज दोपहर में भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्री, श्री अर्जुन मुंडा ने मेला परिसर का भ्रमण किया और मेले की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि इस तरह का आयोजन युगांतर भारती के माध्यम से पर्यावरण मेले का आयोजन किया गया है। हम सभी ने संकल्प लिया है स्वच्छ भारत का और इस स्वच्छ भारत के मूल में प्रकृति, पर्यावरण और जीव का अन्योश्राय संबंध है। जब हम प्रकृति के बारे में संगोष्ठी करते हैं प्रकृति के बारे में चर्चा करते है तो हमें इसका स्वयं आकलन करना चाहिए कि हमें प्रकृति संरक्षण के प्रति कितने सचेत है, कितने सचेष्ट है। वैदिक काल से ही हमारे पूर्वजों ने, हमारे ऋषि-मुनियों ने, मनिषियों ने, हमारे शास्त्रों ने हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति अगाह किया है, हमें प्रकृति से जुड़ने, उनके साथ सहचर संबंध बनाने के लिए सदैव प्रेरित किया है। हम उस पक्ष को भूलते जा रहे है, जिससे हमारा अस्तित्व जुड़ा हुआ है। व्यक्ति इस अस्तित्व को नहीं समझ पाता है। तब ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से ही लोग एकदूसरे जुड़ते है तो पर्यावरण के प्रति एक उम्मीद बंधती है, एक आशा जगती है। आज भारत जी-20 की मेजबानी कर रहा है। झारखण्ड भी इसका मेजबान है। भारत ने इस जी-20 का स्लोगन दिया है। भारत ने वसुदैव कुटुम्बकम को ध्यान में रखते हुए ‘‘वन अर्थ, वन सन, वन फैमिली’’ का नारा दिया है। यही नारा हमारा लक्ष्य है, यही हमारा जीवन पद्धति है।  प्रधानमंत्री ने इसी पक्ष को हमेशा मजबूती के साथ दुनिया को संदेश दिया है। विकास की दृष्टि से बड़े-बड़े नगरों में बड़े-बड़े भवनों में ढे़ेर सारी सुविधाओं के साथ रहते है, पर पर्यावरण के उपर ध्यान केन्द्रित करने, उनका संरक्षण करने की दृष्टि से हम सदैव पीछे रह जाते है। बौद्धिक दृष्टि से परिपक्व कहे जाने वाले सिविल सोसायटी को इस प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में चिंतन करने, कार्य करने की आवश्यकता पड़ गई है। जो जनजाति सिविलाईजेशन से दूर है, भौतिक सुविधाओं से वंचित है, अभाव में जीने वाले है, वे ही प्रकृति के सच्चे मित्र है, क्योंकि वे प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करते है, वरन् उसका अपने बच्चों की तरह से देखभाल करते है। आदिवासी संस्कृति में प्रकृति एवं प्रकृति आधारित पूजा पद्धति प्रचलित है, जिसके कारण झारखण्ड पर्यावरण एवं जंगलों के मामले में भारत में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। पृथ्वी में रहने वाले सभी जीवों की अपनी भूमिका है और वे पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में अपना दायित्व निभाते हैं। पेड़-पौधें जब दुनिया से समाप्त हो जायेंगी तो मनुष्य को कितना नुकसान होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।

पर्यावरण मेले के संरक्षक एवं झारखण्ड विधानसभा जमशेदपुर पूर्वी के सदस्य सरयू राय ने कहा कि दुनिया भर में पर्यावरण पर चर्चा हो रही है, ग्लोबल वार्मिंग क्लाइमेट चेंज की बात हर घर में हो रही है। भारत सरकार नदियों को साफ करने में बहुत पैसा खर्च करती है पर नदी अपने आप को खुद ही बरसात में साफ कर लेती है। जो गंदा कर रहे है उनको रोके। जीरो डिस्चार्ज की वजह से दामोदर स्वच्छ हुआ। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगने से दामोदर शत-प्रतिशत स्वच्छ हो जाएगी।

समापन समारोह के अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में झारखण्ड विधान सभा के अध्यक्ष  रबीन्द्र नाथ महतो ने कहा कि हमारे झारखण्ड की मूल संस्कृति पर्यावरण संरक्षण पर आधारित है। जिसमें हर आचार-व्यवहार यहां तक कि पूजा विधि में भी हमलोग सबके कल्याण की बात करते हैं। सबके कल्याण से मेरा अर्थ केवल मानव जाति का कल्याण नहीं बल्कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सबका कल्याण है। हमारे पर्व-त्यौहार चाहे सरहुल, बाहा, करमा आदि सभी प्रकृति की उपासना पर ही आधारित है। सरना माँ की गोद में उनकी जितनी संताने हैं। सबके पारस्परिक समन्वय के साथ रहने पर विश्वास करते है। विद्वानों ने जिसे पब्लिक ट्रस्ट का नाम दिया है। उस पब्लिक ट्रस्ट की अवधारणा हमारे आदिवासी जीवन में रची-बसी है। वर्तमान युग में जब जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से पूरी दुनिया त्रस्त है, ऐसे में इन आयोजनों से पर्यावरण संरक्षण को और अधिक बल मिलेगा। जिस तरह से हम खनिज संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से दोहन कर रहे है, उससे आने वाले पीढ़ी का क्या होगा, इस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा। कोविड के समय ही हमें प्राणवायु ऑक्सीजन का वास्तविक मूल्य का पता चला, इसकी महता पता चली। सदियों से खड़े पहाड़, पर्वतों को खनिज संपदा के नाम पर एक पल में ही उसके टुकड़े कर रहे है, जंगलों को वृक्ष विहिन कर रहे है। इसका दुष्प्रभाव हमारी आनेवाली पीढ़ी भुगतेगी। एक समय हमलोग डोभा का, चुआं का, तालाब का, नदी का पानी पीते थे। फिर उसके बाद चापानल और सप्लाई का पानी पीने लगे। आज स्थिति यह है कि हम अब बोतल बंद पानी पीने को मजबूर हो गये है, क्योंकि अब भूगर्भ जल भी प्रदूषित हो चुका है। अगर हम पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने पीठ में ऑक्सीजन सिलेंडर ढ़ोकर चलते नजर आयेंगे। यदि जंगलों, प्राकृतिक संसाधनों का इसी प्रकार अनियंत्रित दोहन करते रहे तो केवल मानव ही नहीं बल्कि पृथ्वी में रहने वाले सभी जीव-जन्तु के समक्ष जीवन का संकट खड़ा हो जायेगा। पहले लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए राँची आते थे, पर राँची का मौसम इस कदर बिगड़ा है कि यहां के लोग ही अब स्वास्थ्य लाभ के लिए कहीं और जा रहे है।

समापन समारोह के अवसर पर झारखण्ड विधानसभा के सदस्य, डॉ. लंबोदर महतो, कुमार जयमंगल एवं समरीलाल ने भी अपने विचार रखे।

समापन समारोह के उपरांत छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य-गीत की जीवंत किवदंती एवं पदमविभूषण से अंलकृत श्रीमती तीजनबाई ने पांडवानी प्रस्तुत किया। इस अद्भुत कार्यक्रम का मेले में आये हुए सभी लोगों ने आनंद लिया।

आज मेले के अंतिम दिन मोरहाबादी मैदान में जन सैलाब उमड़ पड़ा। लगभग 20 हजार से अधिक लोगों ने मेला परिसर का भ्रमण किया और खरीददारी किया। मेले में देश के कई भागों से आये हुए स्टॉल धारकों ने कहा कि उनके अनुमान से अधिक का व्यापार मेले में हुआ है और वे अगले पर्यावरण मेला में फिर राँची आयेंगे।
इस दिवसीय मेला को सफलता के साथ सम्पन्न कराने में पर्यावरण मेला के आयोजन सचिव, अंशुल शरण, संयोजक, डॉ. एम.के. जमुआर, सह-संयोजक, आशीष शीतल मुण्डा, डॉ. ज्योति प्रकाश, निरंजन कुमार सिंह, खादी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, जयनन्दु, धर्मेंन्द्र तिवारी, निरजंन कुमार सिंह, बीरेन्द्र कुमार सिंह, मनोज सिंह, शिवानी लता, सत्यम कुमार, रोहित राज, अविनाश कुमार, अमित कुमार के साथ राष्ट्रीय सेवा योजना के सैकड़ों स्वयंसेवक, युगांतर भारती के पवन कुमार, मुकेश सिंह, ब्रजेश शर्मा, पवन सिंह, मुकेश कुमार, दीपांकर कर्मकार, अंगद मुण्डा, बजरंग कुमार, माधुरी कुमारी, पुष्पा टोपनो की महत्वपूर्ण भूमिका रही। धन्यवाद ज्ञापन आशीष शीतल मुण्डा ने किया एवं मंच संचालन श्रीमती शशि  ने किया।