झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

पता चलता ही नहीं

पता चलता ही नहीं
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हम निकल पड़े जिस रस्ते पर,
मंजिल का पता चलता ही नहीं
पाया तुझ में सब कुछ हमने पर,
दिल का पता चलता ही नहीं

जो चाहा, खोज लिया हमने,
है ओर कहाँ और छोर कहाँ
आँखों में छुपे समन्दर के,
साहिल का पता चलता ही नहीं

खुशियों के अवसर कम होते,
पर चोट हमेशा मुमकिन है
आँखों से जो भी कतल हुए,
कातिल का पता चलता ही नहीं

जिसको जीना, वो काम करे,
करनेवाले, करते रहते
कुछ बातों में उलझाते यूँ,
काहिल का पता चलता ही नहीं

कुछ चाल यहाँ शतरंजी है,
मूरख, ऊँचाई पर दिखते
बस यहीं सुमन उलझा रहता,
जाहिल का पता चलता ही नहीं

श्यामल सुमन