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पर्यावरण संरक्षण की दिशा में करीब 30 साल पहले एक आदिवासी महिला के द्वारा शुरू किए गए उनकी एक छोटे से प्रयास ने बदलते समय के साथ समाज पर काफी गहरा प्रभाव डाला उनके इस प्रयास ने राज्य की दिशा और दशा बदल दी. उन्हें आज देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है

सरायकेला खरसावां – पर्यावरण संरक्षण की दिशा में करीब 30 साल पहले एक आदिवासी महिला के द्वारा शुरू किए गए उनकी एक छोटे से प्रयास ने बदलते समय के साथ समाज पर काफी गहरा प्रभाव डाला उनके इस प्रयास ने राज्य की दिशा और दशा बदल दी. उन्हें आज देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है.
1988 में वनों की सुरक्षा के लिए उठाया था कदम
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करने पर झारखंड के सरायकेला खरसावां निवासी चामी मुर्मू को केंद्र सरकार ने पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की है. झारखण्ड वाणी से विशेष बातचीत में चामी मुर्मू ने बताया कि 1988 के समय वन माफिया के द्वारा पेड़-पौधों के अंधाधुंध कटाई और तस्करी से ग्रामीणों के समक्ष जलाने की लकड़ी तक की समस्या उत्पन्न हो गई थी. उस दौर में जब लोगों के लिए दो वक्त का खाना जुगाड़ कर पाना भी काफी मुश्किल होता था उस समय उन्होंने 10 महिलाओं के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करना शुरू किया.
इसके बाद उनकी टीम समाज में जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा करने वाली सोशल एक्टिविस्ट के रूप में उभरी. ग्रामीण क्षेत्रों में जलावन लकड़ी की कमी को देखते हुए सर्वप्रथम उन्होंने अकासिया पौधा लगाना शुरू किया. जिससे ग्रामीणों को प्रचुर मात्रा में जलाने की लकड़ी मिलने लगी. इसके बाद उनकी टीम ने नीम, साल, शीशम के पौधे भी लगाए जो फर्नीचर और घरेलू सामान बनाने में काफी उपयोगी साबित होते हैं. इन पौधों को लगाने का एकमात्र मकसद वनों की रक्षा करना था.
किसानों के जीवन में आया बदलाव आगे उन्होंने बताया कि झारखंड राज्य का पिछड़ा जिला होने की वजह से सरायकेला खरसावां में पानी की कमी थी और माओवादियों की गतिविधि के कारण सरकार सहयोग नहीं कर पाती थी. इस कारण बेहतर जमीन होने के बावजूद किसान खेती नहीं कर पाते थे. इसके बाद उन्होंने सहयोगी महिला संगठन का गठन किया, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के साथ वर्षा जल संरक्षण की दिशा में कार्य शुरू किया, ताकि जिले में बेहतर खेती की जा सके. उनके संगठन के प्रयास से स्थानीय किसानों को धान, अरहर दाल समेत कई प्रकार की सब्जी उगाने में काफी सहायता मिली.
30 वर्षों में चामी के इस प्रयास ने बदल दी तस्वीर
चामी मुर्मू ने बताया कि पिछले दो दशक में उनकी टीम ने 30 लाख से अधिक पौधे लगाए हैं. 49 वर्षीय चामी मुर्मू ने बिना वन विभाग की सहायता से अपने इस प्रयास से झारखंड की तस्वीर बदल दी. 30 वर्षों से वह ‘सहयोगी महिला मंडल’ की सचिव हैं. उन्होंने राज्य के 500 गांव की महिलाओं को यूकेलिप्टस, साल, अकासिया समेत अन्य पौधे लगाने को लेकर जागरूक किया और वन माफिया को समाप्त करने की दिशा में काम की. बताया कि हरित क्रांति अभियान में उन्हें कई प्रकार के मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. लेकिन वह वन बचाने के अपने दृढ़ निश्चय से कभी पीछे नहीं हटीं और इस प्रयास में आने वाले तमाम मुश्किलों का डटकर सामना किया
बताया कि समय के साथ उनका नेटवर्क काफी मजबूत हो चुका था. आसपास के क्षेत्र में कहीं भी पेड़ों को काटने की सूचना मिलने पर वह महिलाओं की टीम के साथ स्थल पर पहुंचकर पेड़ों को काटने से बचाने लगीं. पर्यावरण के संरक्षण को लेकर उन्होंने 2800 स्वयं सहायता समूह बनाया प्रत्येक समूह में 10 से 15 महिला सदस्य शामिल हैं. स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 30 महिलाएं आज पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण दिशा में बेहतर काम कर रही हैं.चामी मुर्मू को वर्ष 2019 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नई दिल्ली के द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जिसे 8 मार्च 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यह पुरस्कार उन्हें प्रदान किया था. इसके अलावे वर्ष 2000 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार 1996 से भी सम्मानित किया. चाईबासा के सामाजिक समन्वय समिति ने उन्हें चाईबासा रत्न से सम्मानित किया है. वहीं एनसीसी झारखंड बटालियन, टाटा पावर, नेहरू युवा केंद्र समेत अन्य कई संस्थानों ने उन्हें अलग-अलग मौके पर विशिष्ट पुरस्कार देकर सम्मानित किया है. चामी मुर्मू ने बताया कि उनका जन्म 6 नवंबर 1971 को सरायकेला खरसावां के भुरसा गांव में हुआ था. वह अविवाहित महिला है. उनके पिता का नाम स्व. धनु मुर्मू है.