झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

झारखंड के आदिवासी समाज के लोग या मजदूरी करने वाले मजदूर दिन भर स्वर्णरेखा नदी में करते हैं सोना छानकर अपने या अपने परिवार का जीविकापार्जन

सरायकेला खरसावां – झारखंड की लाइफ लाइन माने जाने वाली स्वर्णरेखा नदी में मिलती हैं हर दिन सोने के कर्ण जिसे झारखंड के आदिवासी समाज के लोग या मजदूरी करने वाले मजदूर दिन भर स्वर्णरेखा नदी में करते हैं सोना छानकर अपने या अपने परिवार का जीविकापार्जन दिन भर की मेहनत कर एक ग्राम सोना निकाल स्थानीय बाजारों में बेच कई घरों में तब जलते हैं इनके घर का चूल्हा
पानी की बहाव और पानी में काम करने वाले यह लोग पानी में मछली पकड़ने का काम नहीं कर रहे है बल्कि यह वह मजदूर है जो झारखंड की लाइफ लाइन माने जाने वाली स्वर्णरेखा नदी है जिसे हजारों टन सोने का कर्ण बहते पानी की धरो में मिलता है और यह मजदूर या स्थानीय ग्रामीण है जिनका लॉक डाउन के दौरान कंपनियों में काम करने के दौरान काम छूट गया था और दुबारा इन्हें काम नहीं मिला तो खुद मजदूरी और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए इन लोगों ने स्वर्णरेखा नदी में अपने ही हाथों को मजबूती देने को लेकर सोना छानने का काम शुरू कर दिया और सुबह से दिन भर नदी के बालू के कर्ण को नदी के बहते पानी में लकड़ी के पाटे के औजार के साथ सोना निकालने का काम करते हैं और कड़े मेहनत के बाद मात्र हर दिन एक ग्राम सोना निकाल कर स्थानीय बाजारों में बिक्री कर अपना और अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं जिनके बाद ही इनके घरों का चूल्हा जलता है हाथों में कुदाल फारस सबल और गेता लेकर सोने की खोजबीन नदी की तराई में किया करते है जहाँ हर दिन 500 स्थानीय ग्रामीण और आदिवासी समाज के लोग काम करते हैं जिसमें दिन भर की मेहनत के बाद इन्हें एक ग्राम सोना मिलता है और इन्हें बाजार में जाकर बेचते है जिनसे इन्हें करीब 200 सौ से 500 सौ की कमाई होती है फिर इनका जीवन यापन होता है
स्वर्णरेखा नदी में काम करने वाले लोग कहते है कि लॉक डाउन के दौरान काम छूटने के बाद काम नहीं मिला जिसके बाद हम लोग नदी के शरण में आए और स्वर्णरेखा नदी से आदिवासी लोगों का आय का श्रोत है यहां के आदिवासी दिनभर में दो से तीन ग्राम सोने का कण नदी से निकाल लेते हैं सोना गेहूं के आकार का होता है जो बाजार में एक सोने कण कीमत 200 रुपए से 500 रुपए तक का होता है इस सोने को आदिवासी बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं
स्वर्णरेखा नदी किसी दूसरी नदी से नहीं मिलती है बल्कि दर्जनों छोटी-बड़ी नदियां स्वर्णरेखा में आकर मिलती है। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल से होते हुए बालेश्वर नामक जगह पर बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
स्वर्णरेखा नदी से सोना निकलना वहां के लोगों के लिए आम बात है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि नदी के आसपास के इलाके में संभवत सोना के कोई खदान है और नदी उन तमाम चट्टानों के बीच से होकर गुजरती है इसलिए घर्षण की वजह से सोने का कण इसमें भी जाते हैं काम करने वाले कहते हैं विगत 20 वर्षो से काम कर रहे हैं
स्वर्णरेखा के अलावा कुछ जगहों में नदी ‘स्वर्णरेखा’ के नाम से भी जानी जाती है
स्वर्णरेखा की एक सहायक नदी है रेत में भी सोने के कण मिलते हैं. जबकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि स्वर्ण रेखा नदी में जो सोने के कण पाए जाते हैं, वह नदी से बहकर ही आते हैं.जिसे सोने की नदी कहा जाता है. यहां पानी से सोना निकलता है.
पानी के साथ सोना बहने के कारण ही इसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से जाना जाता है. इसको आम लोग यहां सोने की नदी भी कहते हैं कहा जाता है कि यहां के स्थानीय आदिवासी इस नदी में सुबह जाते हैं और दिन भर रेत छानकर सोने के कण इकट्ठा करते हैं. इस काम में उनकी कई पीढ़ियां लगी हुई हैं. तमाड़ और सारंडा जैसे इलाके के हैं जहां पुरुष, महिलाएं और बच्चे सुबह उठकर नदी से सोना इकट्ठा करने जाते हैं.
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सरायकेला खरसावां आदित्यपुर.. मकर संक्रांति एवं टुसू पर्व के शुभ अवसर पर सपड़ा नदी घाट पर समाजसेवी जमना मंडल द्वारा गरीब जरूरतमंद के बीच 1000 साड़ी कंबल का वितरण किया गया. जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए वहीं मौका टुसु पर्व ओर मकर संक्रांति का था जहाँ नदी में स्नान कर रहे बैठे लोगों के बीच खिचड़ी भी वितरण किया गया वहीं पूर्व जेएमएम महिला मोर्चा अध्यक्ष सह समाजसेविका प्रियंका मंडल ने बताया कि कंबल साड़ी एवं खिचड़ी का पुण्य कार्य हमारे स्वर्गीय पिता ने 1979 से शुरू किया गया था. यह पुण्य कार्य निरंतर जारी है जो हरेक वर्ष मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर हमारे माताजी जमुना मंडल के द्वारा किया जाता है. प्रियंका ने यह भी बताया कि मकर संक्रांति सब लोगों के लिए है जो गरीब तबके के हैं उसे हम कंबल और साड़ी वितरण करते हैं उन्होंने मकर संक्रांति की बधाई दी और झारखंड वासियों को शुभकामना दी. इस अवसर पर जोगेन्द्र मंडल, अविनाश खंडेलवाल, प्रियंका मंडल, जमुना मंडल, रीता मंडल, दीपक मंडल, पुरणु मंडल, सत्यनारायण खंडेलवाल, सुदाम मंडल, रितु सिंह, शुभम सिंह, नीरज पासवान, रोहित मंडल, सनत मंडल, मेघा मंडल, सुनील स्वांग, गुरु पदो मंडल आदि अन्य कई लोग उपस्थित थे