पीरितिया! देत दरद घनघोर
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पीरितिया! देत दरद घनघोर।
प्रीत जगावत आस मिलन की, हृदय उठत हिलकोर।।
पीरितिया! देत —–
चाह मिलन की, पंख पसारे, वन में नाचत मोर।
पिया निहारत जुग बीतल, कब, मिलिहें चाँद, चकोर।।
पीरितिया! देत —–
खुशी मिलन है, विरह में पीड़ा, आंसू दोनों ओर।
पूर्व मिलन के, बाद विरह के, मौन मचावत शोर।।
पीरितिया! देत —–
मूल जगत का ढाई आखर, प्रेमहिं करें इंजोर।
जस तस मन की बात सुनावत, नहीं सुमन चितचोर।।
पीरितिया! देत —–
श्यामल सुमन
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