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नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने की नयी पहल, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से किया जा रहा जागरूक

नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने की नयी पहल, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से किया जा रहा जागरूक

खूंटी पुलिस की ओर से नक्सल प्रभावित इलाके में नुक्कड़ नाटक मंचन किया जा रहा है. इस नाटक के माध्यम से लोगों के साथ साथ नक्सलियों को जागरूक किया जा रहा है ताकि नक्सली मुख्यधारा में जुड़े.
खूंटीः झारखंड सरकार की ओर से संचालित प्रत्यार्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत खूंटी पुलिस द्वारा नक्सल प्रभावित इलाकों में जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है, ताकि नक्सली मुख्यधारा से जुड़ें और समाज और राज्य के विकास में हिस्सा बने. जागरुकता अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें नक्सली क्रियाकलापों को बताया जा रहा है.
अड़की के नक्सल प्रभावित कोरवा, बिरबांकी, खसारीबेड़ा, मारंगहादा, सायको, मुरहू, तपकरा, बाजारटांड़ में पुलिस द्वारा नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया. इन इलाकों में पुलिस की नुक्कड़ नाटक मंडली पहुंच रही है. नाटक मंडली के कलाकारों द्वारा नक्सलवाद से आम लोगों के साथ देश को पहुंचने वाले नुकसानों का जीवंत मंचन किया जा रहा है. इसके साथ ही नुक्कड़ नाटक के माध्यम से नक्सलियों को आत्मसर्मण कर समाज के मुख्यधारा में आने का आहवान भी किया जा रहा है.
नाटक के माध्यम से कैसे ग्रामीणों को गुमराह किया जाता है. इसके साथ ही कैसे नक्सली विकास कार्यों को बाधित करता है. ठेकेदारों से लेवी वसूली, विकास कार्यों में लगे हाइवा, डम्फर, ट्रैक्टर, मिक्सर मशीनों में आग लगा दी जाती है. इसकी जानकारी नुक्कड़ नाटक के माध्यम से दी जा रही है
Vani: वीडियोनाटक के माध्यम से कैसे ग्रामीणों को गुमराह किया जाता है. इसके साथ ही कैसे नक्सली विकास कार्यों को बाधित करता है. ठेकेदारों से लेवि वसूली, विकास कार्यों में लगे हाइवा, डम्फर, ट्रैक्टर, मिक्सर मशीनों में आग लगा दी जाती है. इसकी जानकारी नुक्कड़ नाटक के माध्यम से दी जा रही है.
यही नहीं नुक्कड़ नाटक का मंचन वैसे इलाकों में किया जा रहा है, जहां पूर्व में नक्सली गतिविधियां घटती रही हैं और गांव के भोले भाले युवक नक्सलियों के चंगुल में फंसकर नक्सली बनने को मजबूर होते हैं. कई बार आम ग्रामीणों को डरा धमका कर नक्सली अपने कुकृत्यों को अंजाम देते हैं. नक्सलियों से परेशान कई ग्रामीण अब खूंटी शहर की ओर किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं. सामाजिक और आर्थिक नुकसान के बावजूद ग्रामीण डरे सहमे गांव में रहने को विवश हैं. इसका चित्रण नुक्कड़ नाटक के माध्यम से किया जा रहा है. नुक्कड़ नाटक देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जुट जाती है.