नहीं करे जो कदर कलम की
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मुस्कानों में दर्द दिखे वो बिन मौसम के ओले हैं
आह कहीं बर्फीली है तो कहीं दहकते शोले हैं
अपने सपने छूट रहे हैं वो सपने जब दिखलाते
सपने यूँ बिखरे हाथों में सबके खाली झोले हैं
बार बार आँसू दिखलाकर कौन भूल जो छिपा रहे
पर सच मानो उन आँसू ने राज तुम्हारे खोले हैं
कब फकीर,योगी बन जाते कब अभियंता, वैज्ञानिक
लोग समझने लगे आपके, सारे नकली चोले हैं
भूख, गरीबी कम लगती है जब आपस में मिल्लत हो
उस मिल्लत में नित नफरत के जहर आप ही घोले हैं
देखा नायक कई देश के, उनको समझा, महसूसा
नहीं मिला अबतक वो नायक जो इतने बड़बोले हैं
बैर नहीं है सुमन किसी से लेकिन दिल में भारत है
नहीं करे जो कदर कलम की, वो सिंहासन डोले हैं
श्यामल सुमन
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