झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

नीति नियम मूरख बतियाते

नीति नियम मूरख बतियाते
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कदम कदम तू चलता जा
बस लोगों को छलता जा

सम्भल, जहाँ अवसर आए तो
रिश्ते तोड़, निकलता जा

भौतिकता में सुख सारे हैं
पा कर उसे मचलता जा

सुख पाने को अपमानों का
निशि दिन जहर निगलता जा

जहाँ जरूरत, गढ़ अपनापन
सख्ती छोड़, पिघलता जा

नीति नियम मूरख बतियाते
दुनिया के संग ढलता जा

और अंत में रहो अकेले
हाथ सुमन तू मलता जा

श्यामल सुमन