चिन्गारी भर दे मन में
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ऐसा गीत सुनाओ कविवर, खुद्दारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर, चिन्गारी भर दे मन में।।
देख रहे हैं हम सब यारों, कैसे हैं हालात अभी?
मिलते रहते कदम कदम पे, जनता को आघात अभी।
अपने हक की रखवाली को, आमलोग ने चुना जिसे,
ताज दिया पर वो क्या करते, हम सब की वे बात अभी?
सत्य लिखो पर वो ना लिखना, मक्कारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर —–
लिखो हास्य पर व्यंग्य साथ में, लोगों से सम्वाद करो।
भूत – प्रेत, जादू – टोना से, जन जन को आजाद करो।
लड़ना भूख – गरीबी से तो, ऐसे शब्द सजाओ तुम,
उठकर जाति – धरम से ऊपर, नूतन नहीं विवाद करो।
लिखना नहीं कभी कुछ ऐसा, लाचारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर —–
आग बिना उगले लेखन में, आपस का सद्भाव रहे।
इक दूजे का मिल सहलाएं, अगर किसी को घाव रहे।
शब्दों की दीवार बना दो, रोके नफरत की आँधी,
सबको मौका सुमन बराबर, जिसकी जैसी चाव रहे।
मत छेड़ो वो तान कभी तुम, बीमारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर —–
*हे शब्द-वंश के अग्रदूत!* तेरी जरूरत कल भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। तुझे बारम्बार प्रणाम।
श्यामल सुमन
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