झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

महाभारत काल के धरोहर समेटे है भीमख़ाँदा अर्जुन ने शिव जी की प्रतिष्ठा की थी

महाभारत काल के धरोहर समेटे है भीमख़ाँदा अर्जुन ने शिव जी की प्रतिष्ठा की थी
विगत  15 जुलाई 2022 को सुबह 9 बजे माताजी आश्रम हाता के संचालक, कवि और लेखक सुनील कुमार दे अपने माताजी आश्रम के साथी कमल कांति घोष उर्फ मामाजी राजकुमार साहू,मोहितोष मंडल और तपन मंडल ने भीमख़ाँदा पांडेबेश्वर शिवालय का दर्शन किया था जिसका विवरण उन्होंने दिया है।महाभारत काल के धरोहर है यह भीमख़ाँदा यहाँ महाभारत के अर्जुन ने शिव लिंग की प्रतिष्ठा की है। राजनगर से टंगरानी गांव तक पन्द्रह किलोमीटर जाने के बाद भीमख़ाँदा जाने के लिए रास्ता निकला है टंगरानी से भीमख़ाँदा तक एक किलोमीटर पक्की सड़क बनाई गईं है।जमशेदपुर से करीब 13 किलोमीटर तक जाने के बाद कुनाबेड़ा गांव पार करने के बाद चाबर बाधा डूंगरी में भीमख़ाँदा जाने के लिए तीर का निशान दिया गया है।चाबर बंधा डूंगरी से लगभग तीन किलोमीटर तक पक्की सड़क है।
महाभारत काल के कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे है भीमख़ाँदा स्थल के लिए भी ख्याति लब्ध है यह धरोहर राजनगर प्रखंड के बाना पंचायत के अंतर्गत भोंग भोंगा नदी किनारे स्थित पिकनिक मनाने के लिए भी लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है  भीमख़ाँदा में राजनगर प्रखंड के अलावे सरायकेला, जमशेदपुर, हाता, आदित्यपुर,गम्हरिया आदि छेत्र से प्रति वर्ष नया साल में लोग आते हैं।सरकार की ओर से कुछ सौंदर्यकरण का काम भी किया गया है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है इस धरोहर को बचाने के लिए भीमख़ाँदा में एक सेवा ट्रस्ट बनाया गया है, जो सेवा सहायता करता है यहाँ एक आवासीय विद्यालय भी है जो टाटा स्टील के देख रेख में चलता है, जहां पर अभी 120 बच्चे हैं।
मान्यता है कि भीमख़ाँदा में महाभारत काल के समय अर्जुन द्वारा यहां शिव लिंग की स्थापना की गई थी।इस शिव लिंग पर हर सोमवार को शिव भक्त पूजा करते हैं।सावन महीने में यहाँ मेला लगता है सावन में सरायकेला जिला के अलावे पूर्वी और पश्चिम सिंहभूम के साथ साथ पड़ोसी राज्य ओडिशा के मयूरभंज जिला से भी यहां भक्त आते हैं प्रतिवर्ष मकर सक्रांति के आखन के दिन यहां टुसु मेला लगता है।यहां का जो राजा था उनका लड़की का नाम टुसु था।उसकी अकाल मृत्यु हो गई थी इसलिए उनकी याद में राजा ने टुसु मेला का प्रचलन किया था इस मेले में हज़ारों लोग जुटते है  कहा जाता है कि महाभारत काल मे पांडवो ने वनवास के दौरान यहाँ कुछ दिन गुजारे थे भीम द्वारा बनाया गया चूल्हा जो पत्थर का है, भीम का पैर का निशान, हाथी का पैर का निशाना, पांडव द्वारा लिखी गई लिपि,अर्जुन द्वारा स्थापित शिव लिंग,अर्जुन पेड़ जहाँ अर्जुन ने तीर मारकर छेद किया था,राधा कृष्ण का मंदिर,हनुमान मूर्ति जो लोगो को आकर्षित करता है।इसके अलावे सरकार द्वारा सांस्कृतिक भवन,पंचायत का संसद भवन भी है।
लेखक सुनील कुमार दे ने यहाँ के सायबो महतो से मुलाकात की जो यहाँ विगत 12 वर्ष से सेवा दे रहा है।उन्होंने यहाँ के लोक कहानी और कथा सुनाया और लेखक को सब कुछ जानकारी दी।यहाँ पर मान्यता हैं कि हिडिम्बा के साथ भीमसेन की शादी हुई थी और उनके पुत्र घोटातकोच का राज्याभिषेक भी हुआ था।
यहां पांडव ने शिव जी की प्रतिष्ठा की थी इसलिए शिव जी पांडेबेश्वर शिव कहा जाता है।कालांतर में वहां एक राजा था करीब तीन सौ साल पहले उनका एक गाय था।गाय यहां जाती थी और शिव लिंग के ऊपर खड़ी होती थी और अपने अपने दूध निकल कर शिव लिंग के ऊपर गिरती थी।घर मे आने के पश्चात दूध कम देती थी।तब राजा को संदेह हुआ कि कोई न कोई गाय का दूध चूरा लेता है।तब एक दिन देखने के लिए राजा ने गाय की पीछा की तब देखा कि गाय एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई और अपने आप दूध गिरने लगी।तब जाकर देखा कि वहां एक शिव लिंग है जिसके ऊपर दूध गिर रहा है।उसके बाद राजा ने शिव जी का पूजा अर्चना शुरू कर दी जो अभी तक जारी है।धीरे धीरे लोग यहाँ आने लगे,मन्नत करने लगे,मन्नत पूरी होने लगी और जगह के महत्व काप्रचार होने लगा आज भीम खंडा के पांडेबेश्वर धाम आस्था का केंद्र बन चुका है सावन महीने में यह भीमखंडा शिवमय हो जाता है