झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

लिखते, जब जैसा मौसम है

लिखते, जब जैसा मौसम है
*********************
पढ़ना ज्यादा, लिखना कम है
लेखन का बस, यही नियम है

गीत, गजल, दोहा, कविता हो
लिखते, जब जैसा मौसम है

पाठक, श्रोता याद रखे तब
शब्द, भाव में जब संगम है

कभी मुहब्बत कभी सियासत
खुशियों के सँग रहता गम है

एक तरफ गंगाजल कविता
दूजा वो आबे जमजम है

क्यों शब्दों की भीड़ जुटाना
कविता, कला और संयम है

कलम उठाना सुमन सोचकर
बदल रहा हरपल आलम है

श्यामल सुमन