क्यों बंधक मुस्कान अभी?
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वाह वाह कहने लगते जब, कुछ कहते सुल्तान अभी।
सोचो! गाँव, शहर क्यूँ सूने, रौशन क्यों शमशान अभी?
हाल चाल हम सब अपनों के, दूरभाष से पूछ रहे।
लोग-बाग यूँ डर-डर जीते, क्यों बंधक मुस्कान अभी?
दूर हुए अपनों से अपने, समय हुआ है क्यूँ ऐसा?
पहले जैसी है दुनिया पर, लगती क्यों वीरान अभी?
आस पास में चापलूस की, देख भीड़ वो खुश होते।
पढ़े-लिखे, विद्वानों का भी, नित होता अपमान अभी।
सारे दोष विरोधी को दें, नयी चलन बन आयी है।
हाल बुरा पर समाचार में, राजा का गुणगान अभी।
बहुत अनूठा नशा पिलाया, वैचारिक अंधेपन का।
कल की चिन्ता छोड़, मस्त वो, उठा रहे नुकसान अभी।
साथी! कल की पीढ़ी खातिर, सोचो मिलकर चेत जरा।
बात सुमन की गांठ बांध या, बने रहो नादान अभी।
श्यामल सुमन
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