क्या रिश्तों का मोल रहा है?
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रिश्ते – नाते, अमृत धारा,
निभ जाए तो सचमुच प्यारा,
जब रिश्ते, रिसने लग जाए,
तब छा जाता है अंधियारा,
फिर लगता कि वो जीवन में,
जहर गमों के घोल रहा है।
सोच! सुमन क्या बोल रहा है?
समय के सँग रिश्ते गढ़ते हैं,
इक दूजे को नित पढ़ते हैं,
लेकिन निज स्वारथ में अक्सर,
भूल प्रेम को, सर चढ़ते हैं,
आसपास का हाल देख जो,
मन की आँखें खोल रहा है।
सोच! सुमन क्या बोल रहा है?
ये दुनिया इक अद्भुत मेला,
जी लो मिल के, मिटे झमेला,
देख दर्द उनकी आँखों में,
जो भी जीता निपट अकेला,
वही समझ सकता जीवन में,
क्या रिश्तों का मोल रहा है?
सोच! सुमन क्या बोल रहा है?
श्यामल सुमन
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