मानवाधिकार के सक्रिय कार्यकर्ता जवाहर लाल शर्मा ने सुझाव के रूप में जानकारी दी कि ऐसा देखा जा रहा है कि कोरोना से संक्रमित मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के समय परिवार व उनके सगे संबंधियों को असह्य त्रासदी से गुजरना पड़ता है सरकार प्रोटोकॉल के मुताबिक दाह -संस्कार या मिट्टी देने का काम खुद करवाती है। मृतक का पूरा शरीर प्लास्टिक से ढका रहता है, केवल थोड़ा बहुत मुँह दिखाया जाता है। एक दो लोगों को किट पहनकर नजदीक जाकर जल्दी से जरूरी धार्मिक क्रिया सम्पन्न करने को कहा जाता है। चारों तरफ डर का इतना माहौल रहता है कि आदमी अपने प्रिय जन को जल्द से जल्द विदा करने में ही भलाई समझते हैं ।ऐसा इसलिए कराया जाता है और लगता है कि शव के विषाणु कहीं फैल कर आसपास के लोगों को संक्रमित ना कर दें?
ऐसे में सुझाव है कि जैसे टी. बी.
के मृत मरीजों के शरीर में फॉर्मेलिन नामक रसायन को मोटर चलित इंजेक्शन के जरिए प्रवेश कराकर पूरे शरीर को विषाणु रहित कर दिया जाता है तब उन्हें परिवार को सौंपे जाने की व्यवस्था कुछ अस्पतालों में की जाती है ताकि शव के घर पहुंचने पर परिवार के लोगों में टी.बी. का संक्रमण न फैले। अगर ऐसी ही व्यवस्था कोरोना से मृत मरीजों के लिए भी की जाए तो उसे भी विषाणु रहित किया जा सकता है तथा संक्रमण के खतरे को टाला जा सकता है
जब साबुन, पानी तथा सैनिटाइजेशन से हाथ धोने पर कोरोनावायरस खत्म हो सकते हैं तो फॉर्मलीन से तो निश्चित रूप से खत्म हो जानी चाहिए अतः मेरा प्रशासन से सुझाव है कि इस प्रक्रिया को अपनाकर देखा जाना चाहिए। शव को प्लास्टिक से एकदम से लपेट कर तथा लोगों को जरूरत से ज्यादा डराने
के बाद जो बातें सामने आ रही हैं कि किडनी या किसी अन्य अवयव की चोरी कर ली गई, ऐसी संभावनाओं को समाप्त किया जा सकता है।मृतकों को सम्मानपूर्वक व गरिमामय तरीके से विदाई भी दी जा सकती है। सबसे बड़ी बात भय को कम किया जा सकता है।
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