कब दोगे तुम मरहम साहिब?
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क्यों कहते पीड़ा कम साहिब
दिखते क्या बुद्धू हम साहिब
हँसते चेहरे, विज्ञापन में
कोशिश दिखे नहीं गम साहिब
जख्म हज़ारों आमजनों को
कब दोगे तुम मरहम साहिब
ज़ुल्म हुआ जब जब बेटी पर
तब होतीं ऑंखें नम साहिब
तेरे पिछलग्गू यूँ बोले
लगता पी हो चीलम साहिब
ताज सौंपना और छीनना
आमजनों में ये दम साहिब
तलवारों की ताकत कम है
सुमन कलम में दमखम साहिब
श्यामल सुमन
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