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जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा पत्र, कहा स्वास्थ्य मंत्री ने अपने ही मन से एक आरोपित चिकित्सा पदाधिकारी को प्रभारी निदेशक, प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बना दिया

जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा पत्र, कहा स्वास्थ्य मंत्री ने अपने ही मन से एक आरोपित चिकित्सा पदाधिकारी को प्रभारी निदेशक, प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बना दिया

जमशेदपुर। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर आरोप लगाया है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने कार्यपालिका नियमावली के प्रावधानों का उल्लंघन कर आरोपी चिकित्सा पदाधिकारी को खुद ही प्रभारी निदेशक (प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएँ) के पद पर पदस्थापित कर दिया है। उन्होंने इस दिशा में जरूरी कार्रवाई करने की मांग की है।

मुख्य सचिव को लिखे अपने पत्र में श्री राय ने कहा है कि सरकार के प्रशासन संचालन के संदर्भ में कार्यपालिका नियमावली को सरकार का गीता, बाइबिल, क़ुरान कहा जाता है। कोई सपने में नहीं सोच सकता है कि राज्य सरकार का एक मंत्री इसकी अवहेलना करेगा और विभागीय सचिव इसके किसी भी प्रासंगिक प्रावधान के विरूद्ध अधिसूचना निर्गत करने पर सहमति दे देंगे लेकिन झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने ऐसा करने का दुःसाहस किया है। सरयू राय के अनुसार कार्यपालिका नियमावली ने जो अधिकार राज्य के मुख्यमंत्री को दिया है उसका खुलेआम दुरूपयोग सरकार के मंत्री कर रहे हैं। राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक प्रमुख की नियुक्ति की संचिका पर मुख्यमंत्री का अनुमोदन लिए बिना उन्होंने तत्कालीन निदेशक प्रमुख को अकारण हटाकर अपने स्तर से ही नए निदेशक प्रमुख को नियुक्त कर दिया है। यह अधिकार उन्हें कार्यपालिका नियमावली नहीं देती है।

श्री राय के अनुसार, राज्य चिकित्सा सेवा के जिन पदाधिकारी डॉ॰ चंद्र किशोर शाही की नियुक्ति मंत्री  ने अवैध तरीक़ा से निदेशक प्रमुख पद पर किया है उन पर गंभीर आरोप हैं और बाकायदा विभागीय जाँच चल रही है। इनके विरूद्ध चल रही जाँच की विभागीय कार्यवाही के लिए एक चिकित्सक डॉ॰ आर एन शर्मा को उपस्थापन पदाधिकारी नियुक्त किया गया है। इस आशय की अधिसूचना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, झारखंड के अभियान निदेशक ने गत 4 जनवरी 2024 को जारी किया है और स्वास्थ्य मंत्री  ने इन्हें 7 मार्च 2024 को निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएँ बना दिया है। बड़ा सवाल यह है कि जब नव नियुक्त निदेशक प्रमुख पर जाँच चल रही है, तब उप निदेशक स्तर का एक पदाधिकारी जाँच समिति के समक्ष विभागीय कार्यवाही में विभाग के आवश्यक कागजातों का उपस्थापन निष्पक्ष होकर और बग़ैर दबाव के कैसे कर सकता है? खास कर तब, जब निदेशक (प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएँ) तकनीकी रूप से विभागीय प्रमुख होते हैं और विभाग के दस्तावेज उनकी अभिरक्षा में रहते हैं।

सरयू राय ने आगे लिखाः कि गत चार वर्षों मे स्वास्थ्य मंत्री ने चिकित्सकों, सिविल सर्जनों, अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारियों एवं अन्य चिकित्सकों के सैकड़ों स्थानांतरण-पदस्थापन कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधानों की अवहेलना कर की है। श्री राय के अनुसार, विभाग के वरीय चिकित्सक, जिनका स्थानांतरण-पदस्थापन करना या जिन्हें प्रभार सौंपना मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में है, उनके मामले में मुख्यमंत्री के अधिकार का खुल्लमखुल्ला दुरूपयोग स्वास्थ्य मंत्री कर रहे हैं। वह साल में कई बार ताश के पत्तों की तरह अपने विभाग में चिकित्सकों को बदलते रहते हैं। वह भी मुख्यमंत्री को बताए बिना

श्री राय ने 2013 का एक उदाहरण देते हुए बताया कि 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में स्व॰ राजेन्द्र प्रसाद सिंह स्वास्थ्य मंत्री थे। तत्कालीन निदेशक प्रमुख डॉ॰ प्रवीण चंद्रा के मामले में संचिका मुख्यमंत्री तक गई। वहाँ महीना भर लंबित रही। तब राजेन्द्र बाबू को मुख्यमंत्री स्तर पर संचिका निष्पादन करने के लिए स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा था। लेकिन उन्हीं हेमंत सोरेन की निवर्तमान सरकार में उनके स्वास्थ्य मंत्री ने उनका अधिकार ग़ैरक़ानूनी रूप से हड़प लिया। यहां तक कि मेरे सवाल पर विधानसभाध्यक्ष द्वारा सदन में स्पष्ट नियमन देने के बाद भी संचिकाएं मुख्यमंत्री तक नहीं भेजी गईं। येही ग़ैरक़ानूनी सलूक उन्हीं स्वास्थ्य मंत्री द्वारा वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ भी हो रहा है। विभागीय सचिव मौन साधे हैं। कौन सी ऐसी विवशता है कि विभागीय सचिव संचिका पर मंत्री को कार्यपालिका नियमावली के प्रावधानों की याद नहीं दिला रहे हैं और ग़ैरक़ानूनी आदेश देने से मना नहीं कर रहे हैं और संबंधित संचिका मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री तक नहीं भेज रहे हैं?

श्री राय ने लिखा कि स्वास्थ्य मंत्री द्वारा थोक के भाव में वरीय चिकित्सकों का स्थानांतरण-पदस्थापन करना, आरोपियों को प्रमुख पद पर बैठा देना बिना किसी स्वार्थ के सम्भव नहीं है। दवाओं की ख़रीद में घपले-घोटालों और स्वास्थ्य विभाग की अन्य अनियमितताओं के मद्देनज़र यह धनशोधन (मनी लाउंड्रिंग) का मामला बनता है। ऐसे मामलों में सरकार के किसी मंत्री के दरवाज़े पर ईडी दस्तक देगी तो इसे चुनाव के समय राजनीतिक मुद्दा बनाया जाएगा पर आज नहीं तो कल ऐसा होना ही है।