झूठ बोलना मगर कला है
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हम साधु हैं, वो आतंकी,
हर चुनाव में यह नौटंकी।
अजब गजब का खेल तमाशा,
कहीं खुशी तो कहीं निराशा।
जनमत के आगे सब दिन क्या,
कभी, किसी का जोर चला है?
झूठ बोलना मगर कला है।।
अपनी कमियाँ रोज छुपाना,
पुरखों तक का दोष गिनाना।
आमजनों को काम चाहिए,
इनको केवल दाम चाहिए।
भोली भाली जनता कहती,
यह चुनाव भी एक बला है।
झूठ बोलना मगर कला है।।
जब जब अच्छा भाषण होता,
तब तब उतना शोषण होता।
उन्मादी ही सफल आजकल,
सुमन देखके विकल आजकल।
लोक जागरण होगा एक दिन
स्वप्न हृदय में रोज पला है।
झूठ बोलना मगर कला है।।
श्यामल सुमन
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