जाड़े में लगती गर्मी है
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भाषण में कितनी नर्मी है
साबित सब होता फर्जी है
मत समझा, कैसे है जीना
हक सबका, सबकी मर्जी है
जहर धर्म का फैलाना तो
बेशक तेरी खुदगर्जी है
आका बस फरमान सुनाए
लोकतंत्र या मनमर्जी है?
हो चुनाव का मौसम फिर तो
जाड़े में लगती गर्मी है
अपनी बातों से यूं पलटे
यार! गजब की बेशर्मी है
ज्ञान-दीप से चेतो शासक
सुमन एक कविता-कर्मी है
श्यामल सुमन
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