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हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे की जयंती 19 मई पर विशेष

हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे की जयंती 19 मई पर विशेष

जो भारत के हैं,उन भारतीयों के लिए 19 मई का दिन सब से अधिक शुभ दिन है । इसी दिन हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे का जन्म सन 1910 में हुआ था
दिव्य संदेश
वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था , जब मैंने गांधी पर गोली चलाई थी । उसके पश्चात मैं मानो समाधि में हूं और अनासक्त जीवन बिता रहा हूं ।
मैं मानता हूं कि गांधी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए,जिसके कारण मैं उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूं,किंतु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नहीं था ।
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हूं । मैं यह भी नहीं चाहता हूं कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करें
अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूं कि वह पाप मैंने किया है । यदि वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है ।
मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृष्टि से पूर्णतया उचित है । मुझे इस बात में लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे ।
—- नथूराम वि० गोडसे
30 जनवरी 1948 को पंडित नथूराम गोडसे ने गांधी का वध किया था । इसके बाद उन्होंने भागने का कोई प्रयत्न नहीं किया । अपने आपको गिरफ्तार हो जाने दिया । उन पर मुकदमा चलाया गया । अपने मुकदमे की पैरवी उन्होंने स्वयं की
यदि देश-भक्ति पाप है तो मैं मानता हूं मैंने पाप किया है । यदि प्रशंसनीय है तो मैं अपने आप को उस प्रशंसा का अधिकारी समझता हूं ।मुझे विश्वास है कि मनुष्यों के द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमें मेरे काम को अपराध नहीं समझा जाएगा । मैंने देश और जाति की भलाई के लिए यह काम किया । मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिंदुओं पर घोर संकट आए , हिंदू नष्ट हुए ।’
—- नथूराम गोडसे
हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे के द्वारा न्यायालय में दिये गये वक्तव्य पर तत्कालीन भारत की तदर्थ सरकार के प्रधानमंत्री नेहरू ने प्रतिबंध लगाया था ।यह प्रतिबंध क्यों लगाया गया , क्यों डर गए गोडसे के स्टेटमेंट से ।
बहुत बाद के काल में जाकर उस स्टेटमेंट से प्रतिबंध हट सका । तब लोग सच्चाई को जान सके और अब भारत के अनेक लोग गांधी के नाम पर थूकते हैं । हुतात्मा अमर वीर पंडित नथूराम गोडसे की जय बोलते हैं । गोडसे अद्वितीय विद्वान और महान व्यक्ति थे । वे अखबार के संपादक थे ।
नथूराम गोडसे जी का अंबाला बंदीगृह से लिखा गया माडखोलकर जी के नाम अंतिम पत्र : —
प्रिय माडखोलकर जी ! मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार करना अथवा तिरस्कारना आपका प्रश्न है । मेरी विनती है , उसे स्वीकार करें । आपके इस कहानी प्रकाशन को सहायता देने वालों को मेरा धन्यवाद कहे । गुरुवर्य अणणा साहब कर्वे को मेरा अंतिम विनय प्रणाम अवश्य कहें । और क्या लिखूं ? क्रूर कृत्य करने की प्रेरणा परिस्थिति ने मुझे दी , इसी का केवल खेद होता है । स्वर्गारोहण के प्रसंग में मैं शांत हूं ।

आपका शुभेच्छु
नथूराम वि० गोडसे
अंबाला बंदीगृह
14 नवंबर , 1949

लक्षावधि निर्वासितों के लिए भी यह कहानी अवश्य लिखें । आपकी लेखनी शैलीदार है , अन्त:करण कोमल है ।
नाथूराम
उपरोक्त पत्र की शैली को देखकर समझा जा सकता है कि पंडित नथूराम गोडसे कितने सदविचारों वाले एक महापुरुष और महान विद्वान थे ।
अपने मुकदमे की पैरवी में उन्होंने ऐसी-ऐसी बातों का उल्लेख किया जिससे न्यायालय में उपस्थित दर्शकों के साथ-साथ न्यायाधीश भी अचंभित हो गए थे । भारत सरकार ने गांधी के अनशन के कारण पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये नहीं देने का अपना निर्णय बदल दिया तब मुझे यह विश्वास हो गया कि गांधी की पाकिस्तान-परस्ती के आगे जनता के मत को कोई महत्व नहीं । ‘
—- नथूराम गोडसे

गांधी ने देश को छलकर देश के टुकड़े किए क्योंकि ऐसा न्यायालय या कानून नहीं था , जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता , इसलिए मैंने गांधी को गोली मारी । उनको दंड देने का केवल यही एक तरीका रह गया था ।
—- नथूराम गोडसे
15 अगस्त 1947 को भारत की तिहाई भूमि विदेशी बन गई । कांग्रेस क्षेत्र में लॉर्ड माउंटबेटन को सभी वायसरायो में महान वायसराय और गवर्नर जनरल बताया जाने लगा क्योंकि उसने हिंदुस्तान के तीन टुकड़े करके 30 जून 1948 से 10 मास पहले ही कांग्रेस को सत्ता दे दी । यही वह उपलब्धि है जो गांधी से 30 वर्षों में भारत को प्राप्त हुई । इसी को कांग्रेस स्वतंत्रता के नाम से पुकारती है ।
न्यायमूर्ति श्री खोसला ने गांधी-वध के लगभग 15 वर्ष पश्चात ,अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात दस न्याय-निर्णय कथाओं का एक ग्रंथ लिखा ।
उसमें गांधी वध (The murder of Mahatma) अर्थात नाथूराम गोडसे का अभियोग (The case of Nathuram Godse) एक अध्याय है ।
श्री खोसला के मन पर उस समय जो मुद्रा अंकित हुई थी ,वह वस्तुस्थिति उन्होंने शब्दांकित की है । वे लिखते हैं —
नाथूराम का वक्तव्य न्यायालय में उपस्थित दर्शकगण के लिए एक आकर्षक वस्तु थी । खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ था कि उनकी आहें और सिसकियां सुनने में आती थी और उनके गीले-गीले नेत्र और गिरने वाले आंसू दृष्टिगोचर होते थे । न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक संदेह नहीं है कि उन्होंने अधिक से अधिक संख्या में यह कहा होता कि नथूराम निर्दोष है । हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे का बलिदान 15 नवंबर सन 1949 को हुआ था ।
गोडसे की वसीयत के अनुसार जब सिंधु नदी भारत के ध्वजा की छत्रछाया में बहे , उस समय उनकी अस्थियों को सिंधु में प्रवाहित किया जाए ।आज भी उनका अस्थि कलश पुणे के उनके पैतृक निवास में सुरक्षित रखा हुआ है ।
सिंधु नदी सिंध में है । सिंध पाकिस्तान से आजाद होना चाहता है । अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है । हम उसे नैतिक समर्थन दे रहे हैं और भी बहुत कुछ किया जा रहा है
सिंध शीघ्र ही आजाद होगा । फिर उसे भारत में विलीन करने की प्रक्रिया अपनानी होगी और तब पंडित नाथूराम गोडसे की अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित किया जा सकेगा ।
हमारा प्रयास होगा कि इस विसर्जन कार्यक्रम के समय भारतीय जन महासभा के हम कुछ लोग वहां अवश्य उपस्थित रहे ।
आज से 10-12 वर्ष पहले लगभग 12 करोड़ रुपये की लागत से हिंदी में ‘दि रियल स्टोरी ऑफ पंडित नाथूराम गोडसे’ फ़िल्म भी बनी है ।
फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक डॉ संतोष राय है । संयोग से वे हमारे अच्छे मित्र हैं । उनका संपर्क नंबर हमारे मोबाईल से कुछ तकनीकी खराबी के कारण हट चुका है ।
जल्द ही उनसे कैसे भी संपर्क कर जानना चाहेंगे और सहयोग भी करना चाहेंगे कि वह फिल्म अति शीघ्र रिलीज हो ।
महान आत्मा तो थे पंडित नथूराम गोडसे । गांधी कोई महात्मा नहीं थे ।
मेरठ के हिंदू महासभा भवन के ऊपर लिखा है ‘हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे अमर रहे’ ।
उस राह से आने-जाने वाले लोग सहज ही देख सकते हैं हिंदू महासभा भवन मंदिर मार्ग नई दिल्ली में वह कक्ष आज भी विद्यमान है जहां सचमुच के महात्मा पंडित नाथूराम गोडसे रहा करते थे ।
वह मैदान जहां वे अभ्यास किया करते थे , वह भी विद्यमान है । उनका कक्ष तो सभी भारतीयों के लिए सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है ।
ऐसे अमर वीर भारत माता के सच्चे सपूत पंडित नाथूराम विनायक गोडसे को कोटि-कोटि नमन ।

रपट-धर्म चंद्र पोद्दार
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय जन महासभा