झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

हम सिर्फ आदमी हैं या इन्सान भी?

हम सिर्फ आदमी हैं या इन्सान भी?
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कभी लिखा था मैंने कि –

शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है?
ढूंढता हूँ दर – ब – दर मिलता नहीं इन्सान है।

महामारी जिस तरह जोर से फैल रही है, कालाबाजारी का विस्तार उससे अधिक जोर से हो रहा है। आस पास के लोगों के भोगे हुए अनुभवों से, खबरों को पढ़कर, सुनकर और देखकर पता चलता है कि आक्सीजन सिलिंडर, पी पी किट, हेन्ड ग्लोब्स, मास्क, प्राण रक्षक दवाईयाँ आदि की धड़ल्ले से कालाबाजारी हो रही है जो कोरोना जैसे घातक महामारी से लड़ने के लिए अनिवार्य हथियार भी हैं। एम्बुलेंस का मनमाना भाड़ा लेना, मरीजों के लिए पैसा लेकर बेड का इन्तजाम करना, यह सब करनेवाले “विश्वगुरु” भारत के ही लोग तो हैं।
कहने को तो हम सब “विकसित समाज” के अंग हैं लेकिन जब इसी विकसित समाज में कुछ लोगों का आचरण दरिन्दों की तरह सामने आए तो इससे बेहतर है किसी अविकसित समाज में ही जीना क्योंकि उस समाज में कम से कम इन्सानों की जिन्दगी की कद्र तो है!
अनेक परिवारों के बारे में हम, आप, सब देख सुन रहे हैं कि इस महामारी ने पूरे के पूरे परिवार को लील लिया है। उन परिवारों की अर्जित सम्पत्ति को भोगने तक के लिए अब कोई वारिस नहीं बचा। हम सब भयानक खतरों से घिरे हैं। सबकी जान सांसत में है। पता नहीं कब, कौन, कहाँ काल के गाल में समा जाए?
ऐ कालाबाजारियों! माना कि तुम इन्सान नहीं बन पाए पर तुम भी तो “आदमीनुमा” हो! क्या तुझे डर नहीं लगता इस भयानक परिवेश से? क्या तुम या तेरा परिवार नहीं आ सकता इस महामारी की चपेट में? यदि आ गया तो फिर आमलोगों के जीवन से खिलवाड़ करके इस अर्जित धन को कौन भोगेगा? कभी स्थिर चित्त से सोचकर तो देखो! सिहर जाओगे।
डरो! अपने कुकर्मों से वरना याद रखना तुलसी बाबा कह गए हैं कि – “कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा”। आध्यात्मिक तरीके बात नहीं समझ में आती तो न्यूटन के वैज्ञानिक तरीके से समझो कि – “प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है (Every action has its equal and opposite reaction)। सावधान! समय आने दो, इतिहास तुझे भी नही बख्शेगा। समय कभी, किसी को माफ नहीं करता।
इस प्राण घातक परिस्थितियों के लिए शासकीय विफलता का भी समय मूल्यांकन करेगा और जिम्मेवार लोगों के नाम भी दर्ज होंगे इतिहास के काले पन्नों में। लेकिन अभी तो महती आवश्यकता है कि हम सब “मनसा वाचा कर्मणा” एक दूसरे के जीवन को बचाने में सहयोगी बनें।
ईश्वर के प्रति सबकी आस्था अपनी अपनी है और उसकी अपनी महत्ता भी है लेकिन ये हमें कभी भी इस सर्वकालिक सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ी भक्ति और सबसे बड़ी पूजा है। काश! हम सब इसे हमेशा याद रखकर आचरण कर पाते!

श्यामल सुमन