झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

गजबे के रंगरूट रहे हैं

गजबे के रंगरूट रहे हैं
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जो इज्ज़त को लूट रहे हैं
वे अपराधी छूट रहे हैं

आज विरोधी को मनमाफिक
झुण्ड बनाकर कूट रहे हैं

मँहगाई की मार है ऐसी
लोग-बाग अब टूट रहे हैं

लाखों को रोटी के लाले
रोज बदल वो सूट रहे हैं

हर अभियानों में शामिल वो
गजबे के रंगरूट रहे हैं

वही आज दुश्मन से लगते
रिश्ते जहाँ अटूट रहे हैं

जोड़ सुमन अनजाने में जो
जन – धारा से फूट रहे हैं

श्यामल सुमन