झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

गगन को फिर झुकाना तुम

गगन को फिर झुकाना तुम
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कहीं रुकना, कहीं झुकना, कहीं पर मुस्कुराना तुम
अगर जीना, सलीके से, तरीका आजमाना तुम

भला कैसे ये मुमकिन है, गलत मैं हो नहीं सकता
मिले गलती अगर खुद की, उसे खुद को सुनाना तुम

गगन भी झुक रहा देखो, भले वो दूर जितना भी
बना किरदार यूँ अपना, गगन को फिर झुकाना तुम

वही टूटेगा तूफां मे, अकड़ जिस पेड़ में होगी
किसी भी हाल में, आँखों के पानी को बचाना तुम

कोई जी करके लिखता है, कोई जीता है लिखकर के
सुमन लिखता जहाँ जी कर, उसे फिर गुनगुनाना तुम

श्यामल सुमन