गीत, गजलों में खोना अलग बात है
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जबकि आंखों में खुशियां उतरतीं नहीं,
इस तरह मुस्कुराने से क्या फायदा।
लोग अपने बुरे वक्त में ना दिखे,
ऐसा रिश्ता निभाने से क्या फायदा।
ज़िन्दगी का सफ़र रोज चलता मगर,
सोचना दिन जिए कितने अपने लिए।
ये तजुर्बा नहीं तो है क्या जिन्दगी,
उम्र के दिन गिनाने से क्या फायदा।
अब तलक प्यार को मैंने समझा नहीं,
प्यार की बातें करता रहा आजतक।
हर मिलन का जुदाई ही अंजाम है,
बेवजह दिल जलाने से क्या फायदा।
इक चलन जो बुजुर्गो की सेवा करें,
वो चलन रोज कमजोर होता रहा।
कल की पीढ़ी अगर बात ये ना सुने,
फिर ये बच्चे पढ़ाने से क्या फायदा।
गीत, ग़ज़लों में खोना अलग बात है,
उसे जीना सुमन है बहुत ही कठिन।
जो हकीकत को लोगों से कह ना सके,
गीत वो गुनगुनाने से क्या फायदा।
श्यामल सुमन
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