फिर से रोने लगे जनाब
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अपने गुनाह को यूँ धोने लगे जनाब
देखा कि आज फिर से रोने लगे जनाब
जज्बात को जगाते बातों में जोश भर
ये भी सही कि आपा खोने लगे जनाब
हम काटते वही जो यहाँ पेड़ लगाते
वो नागफनी फिर से बोने लगे जनाब
करना नहीं है कुछ भी, बातें मिठास की
बस बात बना अपना होने लगे जनाब
कहते हैं फिक्र उनको परेशान सुमन की
क्यों दूर जा के चैन से सोने लगे जनाब
श्यामल सुमन
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