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एक मंदिर जो 367 वर्षों से कर रहा है जल का संरक्षण, रांची की बड़ी आबादी को नहीं होने देता पानी की किल्लत

एक मंदिर जो 367 वर्षों से कर रहा है जल का संरक्षण, रांची की बड़ी आबादी को नहीं होने देता पानी की किल्लत

झारखंड में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है. प्रदेश के कई इलाकों में पानी किल्लत अभी से ही शुरू हो गयी है. लेकिन रांची का मदन मोहन मंदिर 367 वर्षों से जल का संरक्षण कर मिसाल पेश कर रहा है. सैकड़ों साल पहले मंदिर के संस्थापक लक्ष्मी नारायण तिवारी ने पानी के लिए दूरदर्शिता का जो परिचय दिया था, उसकी वजह से मंदिर को एक अलग पहचान मिली है.

रांचीः जल ही जीवन है. इस संदेश का मतलब गर्मी के मौसम में या फिर हलक सूखने पर ही समझ में आता है. इस साल तो गर्मी ने समय से पहले ही रंग दिखाना शुरू कर दिया है. अप्रैल का महीना शुरू होते ही ना सिर्फ गर्मी सताने लगी है बल्कि पानी के लिए जद्दोजहद शुरू हो गई है. रांची के मोरहाबादी, हरमू और नामकुम इलाकों में भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. बोरिंग ठप्प होने लगे हैं. लेकिन मोरहाबादी इलाके से महज कुछ दूरी पर मौजूद बोड़ेया गांव में पानी की कोई किल्लत नहीं है. इसकी वजह है, प्राचीन मदन मोहन मंदिर. इस मंदिर की स्थापना लक्ष्मी नारायण तिवारी ने 1665 में करायी थी. लेकिन 367 साल पहले उन्होंने पानी के लिए दूरदर्शिता का जो परिचय दिया था, उसकी वजह से मंदिर को एक अलग पहचान मिली है.
आज जहां भू-जल स्तर नीचे जाने पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की बात हो रही है, उसे इस मंदिर प्रबंधन ने 367 साल पहले ही समझ लिया था. बोड़ेया के मदन मोहन मंदिर परिसर में आसमान से गिरने वाला बारिश का एक बूंद भी बेकार नहीं जाता है. मंदिर की छत पर पत्थर काटकर एक अर्घा बनाया गया है. जिसके जरिए बारिश का पानी जलकुंड में चला जाता है. इस मंदिर के प्रांगण में एक कुआं भी है. इसका निर्माण तीस के दशक में हुआ था, जहां अभी-भी पानी भरा हुआ है. मंदिर के संस्थापक के वंशज सुकेश नारायण तिवारी और मंदिर के पुजारी मुरारी पांडेय ने मंदिर की खासियत साझा की.
झारखण्ड वाणी संवाददाता को बताया गया कि मदन मोहन मंदिर का निर्माण ऐसी जगह पर किया गया है जिसके एक किलोमीटर के दायरे में उत्तर और दक्षिण भाग में दो तालाब बना हुआ है. बारिश होने पर पूरे इलाके का पानी दोनों तालाबों में बंट जाता है. दोनों तालाबों के ठीक मध्य में स्थित होने की वजह से मंदिर का रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बारिश के जल को रिचार्ज करता रहता है. एक समय था जब बोड़ेया गांव की आधी आबादी मंदिर के इसी कुएं पर पेयजल के लिए निर्भर थी. आज इस इलाके में कहीं भी पानी की किल्लत नहीं है.
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि सब कुछ समझते हुए भी जल संरक्षण की दिशा में ठोस काम नहीं हो पा रहा है. पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि झारखंड का जियोलॉजिकल स्ट्रक्चर बिहार और उत्तर प्रदेश से बिल्कुल अलग है. पठारी और मैदानी इलाका में काफी अंतर होता है. पठारी इलाका होने की वजह से बारिश का पानी बह जाता है. इसे इंडीविजुअल स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग से रिचार्ज करना संभव नहीं है. इसके लिए कम्यूनिटी स्तर पर काम करना होगा. झारखंड में गर्मी को लेकर रांची के मदन मोहन मंदिर में जल संरक्षण की तर्ज पर बाकी जगह में भी इस विधा को अपनाने की दरकार है.