झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

ईंट स्नेह की जब जुड़े

ईंट स्नेह की जब जुड़े
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दीवारें गिरतीं वहाँ, पड़़ती जहाँ दरार।
रिश्ते पड़ी दरार तो, खड़ी हुई दीवार।।

बाहर से परिवार में, दिखे आपसी मेल।
भीतर, भीतरघात के, जारी रहते खेल।।

अहंकार की पालकी, नीचे उतरे कौन?
मुखिया घर का देखकर, अक्सर होता मौन।‌‌।

अपने अपने काम का, करते सभी बखान।
खुद से खुद साबित करे, घर में वही महान।।

रोटी, पानी, वस्त्र संग, बिजली भी भरपूर।
फिर काहे को हो कलह, सबके सब मगरूर।।

ईंट स्नेह की जब जुड़े, तब सजता घर द्वार।
रिश्ते बढ़ते प्यार से, तब सुखमय परिवार।।

एक साथ रह के सुमन, पाले दिल में शूल।
वे परिजन घर तोड़ते, जो गुनाह संग भूल।।

श्यामल सुमन