धीरज ही एक साथी
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घर घर में डर का साया, है मुस्कुराना मुश्किल।
दुख में किसी के कंधे, सर को टिकाना मुश्किल।
है आस पास कातिल, दिखता कहाँ किसी को?
अब पास आना मुश्किल और दूर जाना मुश्किल।
जाना किधर है अच्छा, दिखती डगर नहीं है?
कहते हैं इक उधर जा, दूजा इधर नहीं है।
कल तक जो साथ में थे हँसते थे, बोलते थे,
पर क्या हुआ अचानक, आई खबर नहीं है?
जिससे संजोये रिश्ते, वो प्यार हिल गया है।
हर कोई आज चिन्तित, आधार हिल गया है।
जीवन बचाने खातिर, जारी हैं कोशिशें भी,
लेकिन अभी तो लगता, संसार हिल गया है।
दुख में घिरे हैं हम सब, रोने से फायदा क्या?
बोझा बना के जीवन, ढोने से फायदा क्या?
चल बाँटते सुमन सँग, शब्दों से भावना को,
धीरज ही एक साथी, खोने से फायदा क्या?
श्यामल सुमन
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