चलो! देश का फलक बढ़ाएं
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जीत तुम्हारी, मेरे गीत, बढ़े तभी आपस में प्रीत।
इक दूजे के गुण हम गाएं, चलो! देश का फलक बढ़ाएं।।
लोकतंत्र का खेल अनूठा, सूर्ख वही, जो जितना झूठा।
मेवा मिलना बन्द हुआ फिर,इस दल से, उस दल से रूठा।
जनहित खातिर जो घातक है,
जमकर अपनी कलम चलाएं।
चलो! देश का फलक बढ़ाएं।।
जनता जब दे उनको आसन,तब करते जनता पर शासन।
जन के धन को बाँट, कहे वो,दिया हमहीं ने सबको राशन।
छुपे हुए रुस्तम की हकीकत,
हम जनता को खोल दिखाएं।
चलो! देश का फलक बढ़ाएं।।
हो सवाल हर अधिकारी से, वतन चले बस खुद्दारी से।
वो गद्दार सुमन को कहते, जो खुद जीते मक्कारी से।
लोक-जागरण, हवन-कुण्ड में,
अपनी समिधा सभी जलाएं।
चलो! देश का फलक बढ़ाएं।।
श्यामल सुमन
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