है सेवक एक प्रधान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी मुस्कान, हमारे भारत में।
जो भरते सबकी थाली, अब थाली उनकी खाली।
पूर्वज के दोष गिनाकर, बजवाते खुद पे ताली।
सड़कों पर खड़े किसान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी —–
झूठे वादों से नाता, सपने भी खूब दिखाता।
जब प्रश्न पूछती जनता, कोई मुद्दा और उठाता।
हैं लोग-बाग हलकान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी ——
अब चेत समय पर प्यारे, बस छोड़ो नकली नारे।
तू बातें सुनो सुमन की, गर्दिश में तेरे सितारे।
मत जन का कर अपमान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी —–
श्यामल सुमन
मजहब में बाँटकर अभी वो बाँटते किसान
हाथों से काम छिन गए अमन चला गया
कैसे ये किसके हाथ में वतन चला गया
मजहब में बाँटकर अभी वो बाँटते किसान
टुकड़े किए हैं इतने कि आँगन चला गया
शासक को देश माना जिस कौम ने कभी
वो बागवां भी न रहा, चमन चला गया
कैसी है बादशाहत, कुछ खोट दिख रहा
बस काम खोजने में यौवन चला गया
कैसी तुम्हारी जिद है किस बात का गुमां
समझाने में सुमन का जीवन चला गया
श्यामल सुमन
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