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ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब MIS-C का खतरा, जानिए किस तरह बच्चों को करता है प्रभावित

ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब MIS-C का खतरा, जानिए किस तरह बच्चों को करता है प्रभावित

ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब एमआईएस-सी का खतरा मंडराने लगा है. यह बीमारी बीस वर्ष से कम उम्र के लोगों को हो रही है. यह बीमारी इसलिए खतरनाक है क्योंकि यह बच्चों के हार्ट, लीवर, किडनी, त्वचा, आंख, फेफड़ा और आंतों को प्रभावित करती है. इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानने के लिए झारखण्ड वाणी संवाददाता ने झारखंड के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश कुमार से खास बातचीत की.
रांची: डॉक्टरों ने इस बात की आशंका जताई थी कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. तीसरी लहर से पहले ही बीस वर्ष से कम उम्र के लोगों में पोस्ट कोविड एक बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी का नाम है एमआईएस-सी यानि मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम. इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानने के लिए झारखण्ड वाणी संवाददाता ने झारखंड के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश कुमार से खास बातचीत की.
डॉ. राजेश कुमार के मुताबिक एमआईएस-सी एक इम्यूनो रिएक्शन डिजीज है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है. तब यह बीमारी शरीर के अंगों को खतरनाक रूप से प्रभावित करने लगती है. यह बीमारी इसलिए खतरनाक है क्योंकि यह बच्चों के हार्ट, लीवर, किडनी, त्वचा, आंख, फेफड़ा और आंतों को प्रभावित करती है. कई बार तो बच्चों के हार्ट की कोरोनरी आर्टरी को खराब कर देता है और पूरी जिंदगी के लिए बीमारी दे देता है
कोरोना संक्रमण से ठीक होने के दो से छह सप्ताह के बाद मुख्य रूप से बीस वर्ष से कम उम्र के लोगों में यह बीमारी होती है. बच्चों को तेज बुखार आ जाता है. बच्चों के शरीर का तापमान 101 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर होता है. इस बीमारी में आंखें लाल हो जाती हैं. शरीर पर दाने आना, पेट दर्द, उल्टी, हाथ पैर में सूजन और डायरिया इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.
डॉ. राजेश के मुताबिक एमआईएस-सी से पीड़ित बच्चे को तत्काल हॉस्पिटल में भर्ती कराना जरूरी है. जिन बच्चों में इस बीमारी के लक्षण हैं, उनके पैरेंट्स डॉक्टर को यह बताएं कि क्या बच्चा पहले कोरोना से पीड़ित रहा है. अगर बच्चे को तीन दिन से अधिक बुखार रहे तो सचेत होने की जरूरत है. कई बार बच्चों को कोरोना हो जाता है और इसका पता नहीं चलता. ऐसे में यह बीमारी और ज्यादा खतरनाक रूप ले सकती है.
डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि यह बीमारी नई है और करीब 50% बच्चों में इसका पता भी नहीं चलता. यह बीमारी इसलिए भी जटिल है क्योंकि लगभग सभी जांच रिपोर्ट नॉर्मल आती है. एंटीबाडी टेस्ट, सीआरपी टेस्ट, ईको जैसे टेस्ट से पता चलता है कि यह एमआईएस-सी है. इस बीमारी में एक लाख से ज्यादा का खर्च आता है. अगर समय से इस बीमारी का पता चल जाता है तो जान आसानी से बचाई जा सकती है.
रांची के एक निजी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में एमआईएस-सी से पीड़ित आठ बच्चों का इलाज चल रहा है. एक बच्चे की मां मंजुला ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के दो सप्ताह बाद ही मिहिर को बुखार आया और फिर डायरिया हो गया. इसी तरह अशोक नगर के सात वर्षीय साद मोहसिन की मां सदफ मजहर ने बताया कि उन्हें तो पता ही नहीं चला कि सदफ को कब कोरोना हुआ. जब तेज बुखार आया तो कई डॉक्टरों से दिखाने के बाद पता चला कि इसे एमआईएस-सी है.