बजते हैं दाँत के सरगम
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हवाएं सर्द जहाँ, बेदर्द शाम हो जाए
मेरी वो शाम, तुम्हारे ही नाम हो जाए
बदन सिहरते ही बजते हैं दाँत के सरगम
करीब आ, तेरे हाथों से जाम हो जाये
घना अंधेरा मेरे दिल में और दुनिया में
तुम्हारे आने से रौशन तमाम हो जाए
छुपाना इश्क ही कबूल-ए-इश्क होता है
करो इकरार जुबां से तो आम हो जाए
सुमन हटा दो सभी चिलमन तो मिलन होगा
रहीम इश्क है, कहीं पे राम हो जाए
श्यामल सुमन
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