झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

ऐसा आज शहर लगता है

ऐसा आज शहर लगता है
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क्या अच्छा मंजर लगता है
पर रिश्तों से डर लगता है

पहले घर जो, अब मकान है
सब कुछ तितर बितर लगता है

कहते हृदय प्रेम से उर्वर
पर चेहरा बंजर लगता है

तड़पे घायल, कौन पूछता
ऐसा आज शहर लगता है

देश चमकता अब विदेश में
पर जर्जर अन्दर लगता है

होठों पे मुस्कान मगर वो
भाव-शून्य पत्थर लगता है

सपने में सुख दिखे सुमन तो
गागर में सागर लगता है

श्यामल सुमन