अब करते खंजर से चुप
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मत रहना तू डर से चुप
और नहीं आदर से चुप
घमासान भीतर सच का
क्यूँ रहते बाहर से चुप?
दुनिया से तुम बोल रहे
पर अपने सोदर से चुप!
उचित। बोलने वाले को
अब करते खंजर से चुप
सोच वक्त कितना मुश्किल
डर में सब अन्दर से चुप
राजनीति की दहशत को
अब कर दे मोहर से चुप
बाहर अलख जगाने को
निकल सुमन तू घर से चुप
श्यामल सुमन
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