झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

आसमां ही फट गया तो

आसमां ही फट गया तो
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कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ
प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ

जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ

चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन थे
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ

बादलों सा नित भटकना अश्क को चुपचाप पीना
याद कर चाहत में तेरी एक दिन मैं भी रहा हूँ

क्या सुमन किस्मत है तेरी आ के मधुकर रूठ जाता
देवता के सिर से गिर के कूप का पानी रहा हूँ

श्यामल सुमन