आकर्षण है झूठ में
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झूठे से झूठे मिले, कहकर झूठ महान।
जो इनमें झूठा बड़ा, बनते वही प्रधान।।
बार बार इक झूठ को, दुहराते हैं लोग।
झूठ लगे सच सा मगर, है संक्रामक रोग।।
सदा जरूरत झूठ को, कोई बने गवाह।
लाख झूठ का जाल पर, सच है बेपरवाह।।
आकर्षण है झूठ में, सच से मुमकिन कष्ट।
झूठ चला कब साथ में, साथी सच, स्पष्ट।।
करे समर्थन झूठ का, झूठे लोग अनेक।
घटता मानव मूल्य भी, खोते सभी विवेक।।
झूठ ओढ़कर मस्त जो, दिखते अक्सर आज।
बड़े लोग के झूठ ने, दूषित किया समाज।।
सच तो सच रहता सुमन, माँगे झूठ प्रमाण।
जीत सदा ही सत्य की, कहते वेद पुराण।
श्यामल सुमन
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