आँखें खुलीं हुईं हैं मगर सो रहे हैं लोग
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मनमानी हो रही तो भला रोकता है कौन?
गाली गलौज खुल के अभी टोकता है कौन?
है आग पड़ोसी के घर में सोचते सभी
दुनिया संवारने की भला सोचता है कौन?
चाहत नहीं किसी की शैतान हम बनें
मुश्किल से कोई सोचे भगवान हम बनें
जो आचरण हमारा बनते हैं हम वही
कोशिश करो कि पहले इन्सान हम बनें
सुनते हैं लोग कितने अभी बोलते सभी
कितना है लाभ-हानि यही तौलते सभी
करते हैं तय इसी से दोस्ती या दुश्मनी
पहले के दोस्तों के राज खोलते सभी
खाते सभी हैं अपने मगर रो रहे हैं लोग
जीते जी लगता जिन्दगी को ढो रहे हैं लोग
आएगी कल जो पीढ़ी क्या फिक्र है उसे
आँखें खुलीं हुईं हैं मगर सो रहे हैं लोग
दुनिया से हो विदाई सुमन नाम छोड़कर
अवसर पे नहीं भागना तू काम छोड़कर
सुविधा जुटाने के लिए दिन रात क्यूँ मरे
आराम की तलाश में आराम छोड़कर
श्यामल सुमन
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