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1932 के आधार पर स्थानीय को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं- बेसरा

1932 के आधार पर स्थानीय को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं- बेसरा

पूर्व विधायक सह ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के संस्थापक सूर्य सिंह बेसरा.

जमशेदपुर-: पूर्व विधायक सह ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के संस्थापक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा है कि 1932 के आधार पर स्थानीय को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं है.स्थानीय नीति और आरक्षण नीति को नौवीं सूची में शामिल करना है लेकिन केंद्र सरकार के पाले में गेंद फेंक देने के बराबर है. लोक नियोजन विषय पर स्थानीय नीति परिभाषित करने का संविधान के अनुच्छेद-16(3) के तहत केवल संसद को ही अधिकार है. स्थानीयता में अधिवास शब्दों का प्रयोग किया गया है जो भारतीय नागरिकता के बारे में प्रावधान है. जो सुप्रीमकोर्ट की जजमेंट का प्रतिकूल है. संविधान के अनुच्छेद- 371(d) आंध्र प्रदेश के संबंध में विशेष उपबंध के तर्ज पर झारखंड की स्थानीय नीति नहीं है. झारखंड राज्य निर्माताओं में से एक ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के संस्थापक सह झारखंड राज्य की मांग पर बिहार विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने वाले एकमात्र पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने दिल्ली प्रवास के दौरान बयान जारी किया है. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार की ओर से विधानसभा की  विशेष सत्र में स्थानीयता नीति परिभाषित करने के लिए विधेयक पारित किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि केवल 1932 के आधार पर स्थानीय व्यक्ति को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं हो सकता है. क्योंकि झारखंड राज्य के अंतर्गत 1932 के पहले तथा 1932 के पश्चात विभिन्न समय में अलग-अलग जिले में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है. उदाहरण के लिए अविभाजित सिंहभूम में 1964 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है. इसी तरह 1935, 1938, 1977, 1981 एवं 1994 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है.
सूर्य सिंह बेसरा ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद -16( 3 )के तहत लोक नियोजन विषय पर स्थानीय नीति निर्धारित करने का अधिकार केवल संसद को ही है. जहां तक झारखंड की स्थानीय नीति को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव है तो यह केंद्र सरकार के पाले में गेंद फेंकने की बात है. वर्तमान केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है. प्रश्न यह उठता है क्या पीएम मोदी की सरकार संसद से इस विधेयक को पारित कर संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल कर पाएंगे ? तब तक क्या झारखंड में स्थानीय नीति” लागू नहीं होगी ?
विधानसभा की विशेष सत्र में पारित विधेयक में झारखंड का स्थानीय व्यक्ति कौन होगा ? इसके संदर्भ में अधिवास यानी संविधान के अनुच्छेद- पांच का जिक्र किया गया है. इसमें भारत के नागरिकता का प्रावधान है.अगर यह नियम बन जाए तो यूं ही मान लिया जाए कि इस प्रकार की स्थानीय नीति सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट जो 2002 में न्यायमूर्ति बी एन खरे और बी एन अग्रवाल की खंडपीठ ने नौ जनवरी 2002 में स्थानीयता के विषय पर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. कोई भी भारतीय नागरिक हर किसी राज्य का स्थाई निवासी नहीं हो सकता है. अतः वर्तमान झारखंड की स्थानीय नीति संविधान के अनुच्छेद -5 अर्थात (अधिवास) के आधार पर स्थानीयता नीति बनाना पूर्ण रूप से  असंवैधानिक है.
बेसरा ने हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के नेतृत्ववाली झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस (ई) एवं राजद गठबंधन की सरकार ने जो अदूरदर्शिता के कारण जो बहुत बड़ी खामियां और त्रुटियां इस विधेयक में रह गई है.पुनर्विचार कर उसे अविलंब संशोधित करने की मांग की. संकल्प प्रस्ताव के साथ अध्यादेश जारी करते हुए तत्काल उसे लागू करें. अन्यथा हम अपील करना चाहते हैं झारखंडियों के आवाम को की इस विधेयक के खिलाफ संपूर्ण झारखंड में व्यापक जनआंदोलन कर वर्तमान राज्य सरकार की स्थानीय नीति को ना सिर्फ बदलें बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस( ई) सरकार को ही बदल डाले. और तो और आगामी 2024 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में सत्ता की परिवर्तन करें