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15 जनवरी को मकर संक्रांति पर विशेष स्वर्ग से मृत्युलोक में माँ गंगा का अवतरण की कहानी- सुनील कुमार दे

15 जनवरी को मकर संक्रांति पर विशेष स्वर्ग से मृत्युलोक में माँ गंगा का अवतरण की कहानी- सुनील कुमार दे

पोटका – हमारे हिन्दू पुराण के अनुसार स्वर्ग से मृत्युलोक में माँ गंगा का अवतरण की कहानी एक लम्बी है एक दिन देवर्षि नारद भगवान विष्णु को संगीत सुना रहे थे संगीत सुनते सुनते भगवान बुद्ध की अंगुली पिघलकर कर पानी का रूप धारण किया वह पानी ब्रह्माजी के कमंडल में जाकर सिमट गई इसी तरह गंगा की उत्पत्ति हुई।
कालांतर में अयोध्या में सागर वंश के लोग एक यज्ञ किया यज्ञ में एक घोड़े को छोड़ा गया देवराज इंद्र ने उस घोड़े को पकड़ कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया जब घोड़ा पूरे देश परिक्रमा कर के समय अनुसार नहीं पहुंचा तो सागर बंश के लोग उसको ढूढ़ने निकले। ढूढ़ते ढूढ़ते वे सभी कपिल मुनि के आश्रम में आ पहुंचे आश्रम में विजयी घोड़े को बांधे हुए अवस्था में देखकर वे सभी कपिल मुनि को मान सम्मान का उल्लंघन करके मुनि को गाली गलौज करने लगे।तब महामुनि कपिल ने उत्तेजित होकर सभी को अभिशाप दिया कि तुम सभी यहाँ पत्थर बनकर रहो। तब सभी की नींद उड़ गई।कपिल मुनि का पैर पकड़कर क्षमा याचना करने लगे और मुक्ति का मार्ग पूछे।कपिल मुनि ने कहा मेरा अभिशाप व्यर्थ नहीं जायेगा लेकिन जिस दिन तुम्हारे कोई बंशज स्वर्ग से माँ गंगा को मेरे आश्रम में ला पायेगा उस दिन उनकी पवित्र स्पर्श से तुम सभी का कल्याण होगा और तुम सभी को मुक्ति मिलेगी।
कालांतर में सागर बंश में भगीरथ नाम के एक महात्मा का जन्म हुआ था वह तपस्या करके ब्रह्मा,बिष्णु और महेश्वर को प्रसन्न किया था और स्वर्ग से मृत्युलोक में मकर संक्रांति के दिन माँ गंगा को कपिल मुनि के आश्रम में लाया था जहां उनके बंशज अभिशप्त थे माँ गंगा की पूत स्पर्श से सागर बंश को मुक्ति मिल गई।
कपिल मुनि का आश्रम पश्चिम बंगाल में पड़ता है जो गंगा सागर नाम से प्रसिद्ध है हर साल पौष संक्रांति के दिन 14 जनवरी अथवा 15 जनवरी की लाखों भक्त गंगा स्नान करने और कपिल मुनि का आश्रम दर्शन करने लोग गंगा सागर जाते हैं बहुत बड़ा मेला भी लगता है कहा जाता है कि सब सागर बारबार लेकिन गंगा सागर एकबार बोलने का अर्थ जीवन में एकबार सभी को गंगा सागर अवश्य जाना चाहिए।
माँ गंगा मकर बाहिनी है मकर का अर्थ मगर मछली मकर संकान्ति के दिन गंगा पूजा भी की जाती है हमारे देश में खासकर झारखंड, बंगाल,उड़ीसा,बिहार आदि राज्य में मकर संक्रांति बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है।दक्षिण भारत मे पंगल के रूप में मनाया जाता है।हमारे झारखंड में टुसु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।टुसु और कोई नहीं, माँ गंगा का ही एक रूप है इसलिये टुसु संगीत में कहा जाता है नमो नमो मकरवाहिनी। नमो नमो विश्व जननी।।
झारखंड में टुसु पर्व 15 दिनों तक चलता है, मेला लगता है,टुसु प्रतियोगिता भी होती है।अच्छे टुसुओं को पुरस्कृत भी किया जाता है। लेकिन दुःख की बात यह है कि आधुनिकता के नाम पर तथा मोबाइल युग में यह महान संस्कृति और परंपरा मृत्यु का प्रहर गिन रही है।
इसलिये सभी से अनुरोध है की अपनी,भाषा,अपनी संस्कृति, अपनी परंपरा, अपना धर्म को बचाके रखने की चेष्टा करें।आधुनिकता के नाम पर सब कुछ त्याग न दें